आज के दिन 18 फरवरी को सुकेत विद्रोहियों ने किया था करसोग चौकी पर कब्जा - तुलसीराम गुप्ता
- 18 फ़र॰ 2020
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सुकेत सत्याग्रह का अन्तिन चरणः

अब वह दिन भी आ गया था, जिसका सभी को इंतजार था। सभी के दिल धड़क रहे थे।
17 फरवरी 1948 की रात्री को तत्तापानी पुलिस चौंकी पर कब्जा करने की तैयारी कर दी गई। चौंकी आने वाले सभी रास्ते वालंटियरों ने बंद कर दिए। तत्तापनी पुल के गेट को भी बंद कर दिया। यहां के कार्यकर्ताओं की सहायता के लिए डा. देवेंद्र कुमार के नेतृत्व में सिरमौर से एक जत्था पहुंच चुका था। (इस जत्थे में लगभग 1 हजार व्यक्ति मौजूद थे। सं.)
थाने में सो रहे मुन्शी श्री तुलसीराम समेत आठ सिपाहियों को काबू करके हथकड़ियां लगाकर मालखाने पर कब्जा कर लिया गया। मालखाने में 18 नग 303 बंदुकें थी, 24 बारुद वाली बंदूकें थी, 36 किलो बारुद सिक्का तथा 4 पेटी पीतल वाले कारतूस की मिली थी।
अगली प्रातः श्री ठाकुरदास गिरदावर, मनीराम पटवारी और नीलाम्बरराम गार्ड को गिरफ्तार किया गया। रजोट में श्री लछमूराम नम्बरदार को हिरासत में लिया। गिरफ्तार किए गए सभी सिपाहियों के साथ सत्याग्रह पूरी शान शौकत से तिरंगा झंडा लहराते हुए पांगना की तरफ बढ़े।
इसी दिन यानी 17 फरवरी 1948 को श्री शिवानंद रमौल, एलजी.वर्मा, पं. पद्मदेव, सदाराम चंदेल, दौलतराम सांख्यान, ठाकुर दत्त शास्त्री, संतराम शास्त्री, मुकुंदलाल, संतराम, राधाकृष्ण, केशवराम, कपुरू, कमला, सुवाराम, वीणूराम, ठुरू, धीरमल आदि फेरनी के साथ लगते कुल्लु इलाका के बहना गांव में इकट्ठे हो गए और अलगे दिन प्रातः 8 बजे पुलिस चौकी फेरनू पर कब्जा करने की योजना बनाई ।
18 फरवरी 1948 की प्रातः वालंटरियों ने चारों ओर से पुलिस चौंकी को घेरकर उस समय चौंकी में जो दो सिपाही थे, हिरासत में ले लिये। मालखाने में रखे शस्त्र की सूचि बनाकर उसे वालंटियरों की निगरानी में रखा गया।
इसके बाद सत्याग्रही तिरंगा झंडा लहराते और नारे लगाते हुए करसोग की ओर बढ़ते गए। रास्ते में जो भी सरकारी कर्मचारी मिलता था उसे कब्जे में ले लिया जाता था। जत्था लगभग 3 बजे मुमेल पहुंचा। वहा जासूसी के लिए आए दो सिपाहियों को भी कब्जे में ले लिया। और तेजी से करसोग की ओर बढ़ गए।
करसोग में सत्यग्रहियों के स्वागत के लिए श्री हेथचंद वैध अपना जत्था लेकर तहसील के नीचे से नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे तो श्री श्रीरामसिंह तहसीलदार जो उस समय तहसील के चौबारे में बैठे थे, ने कहा कि मैं तेरी इंकलाब जिंदाबाद जल्दी ही ठीक करुंगा।
स्वागत के बाद सत्याग्रहियों का जत्था तहसील के नीचे और थाने के थोड़े से आगे जाकर वापिस मुड़ा और थाने में उस समय जो केवल एक सिपाही था, कैद करके हवालात में बंद कर दिया गया। योजना इतनी चुस्ती से चलाई जा रही थी कि थाना और तहसील साथ-साथ होते हुए भी थाने में की कार्रवाही का पता तहसील में ने चल सका। जत्थे में हजारों आदमी थे।
थाने के बाद प्रमुख व्यक्ति तहसील में जाने लगे तो दरवाजे पर खड़े शुकरू चपरासी ने रास्ता रोकना चाहा तो उसे एक थप्पड़ लगा और वह सीधे अपने घर ओर भाग गया।
श्री श्रीराम सिंह तहसीलदार से हाथ मिलाते हुए, पं. पद्मदेव ने उसे कुर्सी से खिंच दिया। उसका शरीर काफी भारी होने के कारण तीन-चार आदमी उस पर आसानी से काबू नहीं पा सके। उसने अपनी छूरी निकालने के लिए खिड़की पर हाथ मारा पर वह बंद थी। उसे काबू करने के लिए जब तक नीचे से रस्सियां पहुंचती उससे पहले ही श्री आत्माराम बुधा ने अपनी पगड़ी खोलकर उसे बांध दिया। रस्सियां आने पर उसे रस्सियों से कस दिया गया।
उसे ले जाने के लिए तहसील से बाहर निकाला तो लोगों ने उस पर लाठियां बरसा दी गई यदि नेता लोगों ने उसके सिर को अपने हाथों से न ढका होता तो लोगों का गुस्सा न जाने क्या कर देता।
एक व्यक्ति जब अपनी भड़ास नहीं निकल सका तो वह थाने की ऊपरी की मंजिल पर चढ़ गया और जेल में ले जाने के रास्ते पर खड़े होकर अपने लाठी से रामसिंह के सिर को निशाना बना या और कहा ‘तू था गो स’ यानी (तू ही था वो)।
सभी गिरफ्तार किए कर्मचारियों को थाने की जेल में बंद कर दिया और वहां वालंटियरों का पहरा लगा दिया। दूसरे दिन सभी कैदियों को इलाका बगड़ा के ‘वेलूढांक’ में ले जाकर रखा गया।
कल पांगना चौकी पर कब्जे की कहानी प्रकाशित की जाएगी...
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