हिमाचल के करीब 50 सामाजिक संगठनों व बुद्धिजिवियों ने कोरोना को लेकर क्या कहा?
- ahtv desk
- 17 अप्रैल 2020
- 10 मिनट पठन
कोविड-19 जन स्वास्थ्य संकट पर हिमाचल में प्रतिक्रियाएँ बीते 3 हफ़्तों के कर्फ्यू के दौरान उभरे मुद्दों की समीक्षा आने वाले समय के लिए अपील

आज पूरा विश्व कोविड-19 (कोरोना वायरस संक्रमण) नामक महामारी की गिरफ़्त में ऐसे आया है कि जनजीवन ठहर गया है| हम समझते हैं कि इस संकट से निपटने और महामारी से नागरिकों की सुरक्षा के ख़ातिर, सरकारों को कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है| भारत जैसे देश में जन स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियों के चलते सरकार व प्रशासन को पर्याप्त समय लेना इसलिए भी ज़रूरी है ताकि अगर यह महामारी और व्यापक स्तर या सामुदायिक स्तर पर फैलती है, जैसा की कई विशेषज्ञों ने इंगित किया है, तो हम व्यवस्थित रूप से इससे उत्पन्न स्थिति से निपटने को तैयार रहें| इस मुहिम में जुड़े सरकारी, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों, स्वास्थ्य कर्मियों और ऐसे सभी भागीदारों जिन्होंने दिन रात जनता की सुरक्षा के लिए काम किया है उन सभी को हम नमन/सलाम करते हैं |
सभी तथ्यों को जानते तथा मानते हुए हम हिमाचल के परिपेक्ष में पिछले तीन हफ़्तों से चले आये कर्फ्यू को ले कर कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे और सवाल खड़े कर रहे हैं और साथ ही आने वाले समय के लिए सरकार, प्रशासन, मीडिया तथा सभी नागरिकों के सामने अपनी अपील दर्ज कराना चाहते हैं| हम यह समझते हैं की जिम्मेदार नागरिक तथा सामाजिक संगठन होने के नाते इस स्थिति की समीक्षा कर महत्वपूर्ण पहलुओं को उठाना हमारा कर्त्तव्य है ताकि हमारा लोकतंत्र मज़बूत रहे और साथ ही इस संकट से जूझने की व्यवस्था और प्रक्रिया न्यायपूर्ण, समावेशी, संवेदनशील और प्रभावी हो |
हिमाचल में कोविड-19 पर प्रतिक्रियाओं का आकलन – 3 हफ़्तों के कर्फ्यू के दौरान कुछ अहम उभरते मुद्दे
1. हिमाचल राज्य की संवेदनशीलता:
हिमाचल एक पहाड़ी राज्य है जहां की जनसंख्या कम है (68.6 लाख) और यहाँ जनसंख्या का घनत्व भी कम है| इसलिए हो सकता है कि वायरस का फैलाव यहाँ उस स्तर पर न दिख रहा हो – परन्तु हम संवेदनशील हैं क्योंकि हिमाचल में कई लाख प्रवासी मज़दूर काम करते हैं – ख़ास कर औद्योगिक क्षेत्रों और सेब के बागानों में, साथ ही हज़ारों लोग राज्य के बाहर काम व शिक्षा के लिए जाते हैं और वर्ष में एक करोड़ से अधिक सैलानी यहाँ बाहर से आते हैं – जिसमें धार्मिक स्थलों के अलावा अन्य पर्यटन स्थल जैसे मनाली, शिमला, धर्मशाला आदि में काफी भीड़ रहती है| साथ ही हमारी जन स्वास्थ्य व्यवस्था भी कोई ख़ास नहीं हैं| हाँ, एक समय में हम पहले नम्बर वाले राज्य केरल के आसपास थे परन्तु पिछले कुछ वर्षों में हिमाचल की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति काफी खराब हुई है – कांगड़ा, उना, सिरमौर, चंबा और सोलन जैसे जिलों में स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों की हालत कोई ख़ास नहीं है और सराज, किन्नौर, लाहौल-स्पिति जैसे इलाके दूर दराज़ और दुर्गम हैं जिसके कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्या के समय में सेवाओं तक पहुँचना ही अपने आप में बड़ी परेशानी है| इसमें दो राय नहीं कि हिमाचल में यदि कोरोना वायरस के संक्रमण का दर बढ़ता है तो हमारे पास सुविधाओं की कमी है|
2. ट्रांसमिशन से सामना करने की तैयारी के बारे जानकारी का अभाव
इस दौरान सरकार ने जो कदम उठाए हैं उसमें निम्नलिखित क्षेत्रों की जानकारी को जनता के साथ पूर्ण रूप से साझा करने के प्रयास न तो सरकार और न ही मीडिया द्वारा किये गये:
● राज्य में टेस्टिंग करने की योजना और उसके लिए उठाए गये कदम
● PPE (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) किट्स की स्थिति व आवंटन
● टेस्टिंग किट्स और टेस्टिंग/जांच केंद्रों को बढ़ाने के क्षेत्र में किये गए कार्य
● एम्बुलेंस और अन्य आपातकालीन सेवाओं से जुड़ी व्यवस्था
● जिलावार वेंटीलेटर की संख्या – खासकर की ज़्यादा खतरे वाले क्षेत्रों में
● जिलावार कितने क्वारंटाइन और आइसोलेशन केंद्रों को चिन्हित किया गया है
● डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मचारी जैसे की आशा कर्मचारी, आंगनवाडी कर्मचारी, लेबोरेटरी स्टाफ़, पैरामेडिकल स्टाफ़, सफ़ाई कर्मचारी व सभी अन्य फ्रंटलाइन कर्मचारी जिसमे एम्बुलेंस चलाने वाले से लेकर मरीज़ को साथ लाने वाले व सभी अन्य लोग जिनकी इस महामारी के समय प्राथमिक रूप से ड्यूटी लगी है जैसे शिक्षक, पुलिस विभाग के लोग इन सब ,की स्थिति का जायज़ा लेते हुए उनके प्रशिक्षण के साथ साथ उनकी टेस्टिंग और सुरक्षा से जुड़े कदम
● इस महामारी से बचने, इससे जुड़े भ्रम, क्या करें क्या नहीं ऐसे कुछ मुद्दों पर सरकार और प्रशासन द्वारा जागरूकता से जुड़े उठाए कदम और सामग्री |
● लॉकडाउन के समय भी जो सुविधाएँ सरकार द्वारा जारी रहीं उनसे जुड़े लोगों जैसे दुकानदारों, नगरपालिका व अन्य सफ़ाई कर्मचारियों, अखबार, सब्जी और दूध विक्रेताओं व अन्य के प्रशिक्षण और उनकी सुरक्षा व टेस्टिंग से जुड़े कदम
कई राज्यों ने ये जानकारियाँ अपने मीडिया बुलेटिन में ज़ाहिर की है| हिमाचल स्वास्थ्य विभाग को भी उनके द्वारा मीडिया में दी जाने वाली रोज़ाना की जानकारी में ये बिंदु भी शामिल करने चाहिए थे - पर इसकी विस्तृत जानकारी मीडिया को नहीं दी गयी|
पश्चिमी हिमालयी राज्यों द्वारा उठाये गये कदमों और व्यवस्थाओं पर किया गया तुलनात्मक अध्ययन बताता है कि हिमाचल में टेस्टिंग करने की गति अन्य राज्यों से धीमी है – जबकि हिमाचल बाकि 2 पड़ोसी राज्यों (जम्मू-कश्मीर तथा उत्तराखंड) से जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी आगे है |

3. कोविड-19 से जुड़ा सामाजिक भेदभाव, हिंसा और सांप्रदायिक भावनाएं हांलाकि यह ठीक बात है कि कोविड-19 के संक्रमण से बचने का तरीका शारीरिक दूरी है और इसकी जानकारी सभी लोगों को होना ज़रूरी है| परन्तु इस बीमारी को लेकर ऐसा हव्वा समाज में बन गया की लोग ऐतियाद बरतने तक सीमित नहीं रहे बल्कि सामाजिक भेदभाव पर उतर आये हैं| इसका सबूत है लोगों से साथ मार पीट और हिंसा की घटनाएँ जो राज्य में कई जगह घटी हैं| इसके पीछे एक तरफ फेक न्यूज़ और झूठी अफवाहें हैं तो दूसरी तरफ हमारे जन प्रतिनिधि भी हैं जिन्होंने मीडिया को स्टेटमेंट देते समय पोजिटिव केस या मरीज़ों की सामुदायिक पहचान पर बार-बार टिप्पणी की| ‘जमात’ वाला मुद्दा बार-बार मीडिया ने भी उछाला और इसके चलते कई क्षेत्रों में अल्पसंख्यक समाज, मुसलमान और प्रवासी मज़दूरों के ऊपर हमले हुए और उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया| जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने दिशा निर्देशों में यह स्पष्ट किया है कि पोज़िटिव लोगों की कम्युनल प्रोफाइलिंग न की जाए| आज हिमाचल में कुछ आम लोग यह भ्रम फैला रहे हैं कि यह बिमारी केवल एक समुदाय या बाहरी लोग लाये हैं और वही फैला रहे हैं – इस तरह की भ्रांतियों पर तुरंत विपरीत टिप्पणी नहीं हुई और ऐसी फेक न्यूज़ पर रोक नहीं लगी तो शायद इस से हमारे लिए संक्रमण को रोकना और मुश्किल हो जाएगा| साथ ही ऐसी भ्रांतियों से समाज में जो गहरे विखंडन पैदा होंगे उनके प्रभाव से निकलना बहुत ही मुश्किल होगा| इस बीच जो भी हिंसा की घटनाएं सामने आयीं - चाहे वो टांडा सरकारी अस्पताल में काम कर रहे मजदूरों के साथ हो, चाहे बरोट और पंडोह में कश्मीरी प्रवासी मजदूरों के साथ या फिर उना में हुए एक युवा के साथ अप्रत्यक्ष हिंसा का मामला हो जिसकी वजह से उसने आत्महत्या कर ली - हम इन सभी तरह की हिंसा का खंडन करते हैं! 4. प्रवासी व दिहाड़ी मज़दूरों तथा राहत कार्यों की स्थिति: जहां तक ज़रूरतमंद और गरीब परिवारों और प्रवासी मज़दूरों की स्थिति और इनकी रिलीफ/ मदद के लिए क्या प्रयास किये गये हैं का सवाल है तो इस मुद्दे में जवाबदेही और पारदर्शिता की काफी कमी सामने आई है| पूरे प्रदेश में इस समुदाय को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है - जो राज्य के अन्दर के प्रवासी मजदूर हैं उनको कई दिनों पैदल चल के घर पहुंचना पड़ा और जो लोग राज्य के बाहर फंसे हैं वो घर आने के लिए करहाते रहे| ऐसे तो कुछ जिला प्रशासनो ने राज्य के प्रवासी मज़दूरों, दिहाड़ी मज़दूरों और कम आय वाले परिवारों की ज़रूरतों पर सक्रिय कार्यवाही की है| लेकिन साथ ही मानना पड़ेगा कि यहाँ पंचायतों, सक्रिय नागरिक और सामाजिक संगठनों की भूमिका अहम रही जिन्होंने व्यक्तिगत व आर्थिक रूप से राशन बांटने और अन्य राहत कार्यों में ज़रूरतमंद लोगों की इन विपरीत परिस्थितियों में मदद की है | गौरतलब है सरकार द्वारा एक तय राशन सामग्री को जरूरतमंद परिवारों तक डिपो के माध्यम से आवंटन करने के निर्देश हैं परन्तु पहले तो कितनी राशी या सामग्री प्रति राहत कोष के अंतर्गत तय है उसको लेकर असमंजस है लोगों के बीच| साथ ही इस सामान्य राशी/राशन संख्या में लोगों का गुज़ारा कैसे होगा यह भी सवाल है | इस सन्दर्भ में दिहाड़ी मजदूरों, भूमिहीन लोगों या दैनिक भत्ते पर निर्भर कई समुदायों को लाकडाउन की आर्थिक मार के साथ साथ महामारी में राहत सामग्री और राशन के लिए भी प्रशासनिक जद्दोजहद और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है जैसे की चंबा जिले में निवासरत घुमंतू बंगाली समुदाय के लोग| निम्नलिखित जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया गया है : ● जिलावार अंतर और आंतर प्रवास मज़दूरों,(पंजीकृत/ गैर पंजीकृत) और बेघर लोग/परिवारों/बच्चों, एकल महिलाओं और ऐसे परिवार जिसमे कमाने वाला व्यक्ति अपंग है उनकी संख्या जिन्हें किसी भी प्रकार की मदद की ज़रूरत हो और प्रशासन द्वारा इनका मूल्यांकन करने के लिए उठाये कदम | ● बिना राशन कार्ड वाले व्यक्ति जिन्हें राशन की ज़रूरत है और उनके लिए उठाये गए कदम | ● प्रवासी और दिहाड़ी मज़दूरों और ज़रूरतमंद परिवारों तक आवश्यक राहत सामग्री पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष और अन्य निधियों में एकत्रित और व्यय की गई राशि का ब्यौरा ● BPL और अन्य ज़रूरतमंद परिवारों को राशन की उपलब्धता और प्रावधान ● मनरेगा मज़दूरों व अन्य दिहाड़ी मज़दूर जो मनरेगा के अंतर्गत पंजीकृत नही हैं और वे सभी मजदूर जो अनुबंध श्रम अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत नही हैं या छोटे मोटे अवर्गीकृत कामों के माध्यम से गुजर-बसर करने वाले लोगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करने से जुड़ीं योजना | ● मिड-डे मील स्कीम में पंजीकृत बच्चों, ख़ास कर के मजदूरों और BPL परिवारों से आने वाले बच्चों को प्राथमिकता देते हुए उनके घर तक राशन/राहत राशी पहुँचाने की व्यवस्था से जुड़े कदम| ● सरकार द्वारा राशन वितरण कार्ययोजना: राशन वितरण से जुड़े मानदंड, कौन लोग/परिवार सरकार की इस स्कीम के अंतर्गत आते हैं, प्रति परिवार कितना राशन कितने समय के लिए दिया जा रहा है और उससे जुड़े मानदंड, राशन किट में दी जाने वाली सामग्री| ● वे सभी हिमाचली जो दूसरे जिलों या राज्यों में काम करते हैं और लॉकडाउन के कारण फस गए हैं, उनके वापस घर आने की क्या व्यवस्था है| क्या इस सन्दर्भ में राज्य सरकार अन्य राज्यों की सरकार के साथ मिलकर कुछ योजना बना रही है या नहीं | 5. लैंगिक भेदभाव और औरतों की स्थिति महिलाओं को महामारी संकट और लॉकडाउन के समय में, पारिवारिक हिंसा और दुर्व्यवहार का सामना अधिक करना पड़ रहा है क्योंकि उनके पास सार्वजनिक स्थानों तक पहुँच कम है और मर्दों की घर में मौजूदगी अधिक| ऐसी स्थिति में महिलाओं के पास कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं होता | इस तरह की महामारी का सबसे विपरीत प्रभाव एकल महिलाओं के जीवन पर पड़ता है | अधिकतर स्वास्थ्य कर्मचारी और नर्सिंग स्टाफ में महिलाएं ही हैं इसलिए उनकी व्यक्तिगत और आर्थिक सुरक्षा सबसे अहम है| इस लॉकडाउन के दौरान आशा कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार और हमले की खबर के साथ-साथ घरेलू हिंसा के भी कई मामले सामने आए हैं | इसलिए, घरेलू हिंसा के मामलो के लिए जिला स्तरीय हेल्पलाइन और अन्य सुविधाओं को सक्रिय करने की ज़रूरत है जिससे ज़रूरतमंद महिलाएं आसानी से रिपोर्ट कर सकें | आने वाले समय में उठाये जाने चाहिए ये कदम ● ज़्यादा से ज़्यादा कोरोना वायरस के टेस्ट करके कोरोना वायरस टेस्ट की दर को बढ़ाने के प्रयास| ● किसी भी कमज़ोर या वंचित वर्ग या समुदाय के खिलाफ इस वैश्विक महामारी को लेकर भ्रम, लांछन, नफरत और डर का माहौल खत्म करने की दिशा में प्रयास| प्रवासी मजदूरों, आशा कर्मचारियों और अल्पसंख्यक व वंचित समुदाय के लोगों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में तुरंत और कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए | ● इस महामारी से जुड़ी कोई भी खबर रिपोर्ट करने के लिए WHO और ICMR के दिशा निर्देशों का पालन किया जाए | ● किसी भी सामाज या समुदाय के साथ महामारी संबंधित राहत कार्य में किसी भी प्रकार के सामाजिक या प्रशासनिक भेदभाव पर तुरंत कार्यवाही हो ● जन स्वास्थ्य प्रणाली और आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र (सुरक्षा और प्रशिक्षण किट, बेड, कर्मचारी, वेंटीलेटर्स आदि) तैयार करने की ओर कदम उठाने और इसकी जानकारी मीडिया के माध्यम से रोज़ाना सार्वजनिक रूप से जनता के समक्ष करना | ● सरकार द्वारा किये जा रहे राहत कार्यों व निम्न आय वाले परिवार, प्रवासी और दिहाड़ी मज़दूरों और वंचित समुदायों के लिए की जा रही व्यवस्थाओं की जानकारी सार्वजनिक करना | ● जिन स्वास्थ्य सेवाओं को निलंबित किया गया है इन्हे सभी उचित सावधानियों के साथ बहाल करना चाहिए- जिससे कि कैंसर, टी.बी जैसे अन्य रोगों से ग्रसित रोगी उपचार तक पहुंच सकें । कुछ मेडिकल कॉलेज और अन्य स्वास्थ्य केंद्र उ उपचार के लिए , खोले जायें ताकि कोविड-19 संक्रमण के साथ और अन्य बीमारियों पर भी ध्यान दिया जा सके| ● किसान संगठनों को जोड़ते हुए चारे, बीज और किसानों/पशु धन की ज़रूरतों का आकलन करना और पूर्ति करने की दिशा में कदम उठाना | साथ ही घुमंतू पशुपालक जो इस मौसम में चराई के लिए निकल जाते हैं उनकी सुरक्षा व पहुँच का ध्यान रखना. पशुपालकों के द्वारा उत्पादित दूध, दही, पनीर आदि अन्य दैनिक उत्पाद को संग्रह व बेचने हेतु सरकार द्वारा व्यवस्थित ढाँचे को खड़ा करना ताकि पशुपालक की मूलभूत आय भी बनी रहे और इन उत्पादों का बेकार व्यय भी न हो| ● सभी केन्द्रीय और राज्य सरकार की राहत से जुड़ी योजनाओं की पहुँच सुनिश्चित करना और मीडिया के माध्यम से इस जानकारी को सार्वजनिक करना | ● जिला स्तर पर गैर-सरकारी संस्थाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं को समन्वय, योजना बनाने और लॉकडाउन निकास योजना तैयार करने में शामिल करना |आवश्यकता है एक विकेन्द्रित, समावेशी व सवेंदनशील योजना अपनाने की | ● राशन वितरण के लिए डिपो के अलावा या डिपो के माध्यम से बिना राशन कार्ड वाले परिवारों के लिए सामग्री उपलब्ध करवाई जाए और किसी प्रकार का भ्रष्टाचार न हो इसके लिए पारदर्शिता हेतु एक ब्यौरा सबके साथ साझा होना चाहिए| ● वे सभी स्वास्थ्य कर्मी जो इस महामारी की लड़ाई में सबसे आगे खड़े हैं उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करवाई जाए | उनको आर्थिक समर्थन के साथ साथ उनके प्रशिक्षण पर ध्यान दिया जाए ● उन सभी लोगों की समस्याओं का समाधान करें जो हिमाचल से बाहर या हिमाचल में ही किसी अन्य जिले में अटके हैं और साथ ही पर्याप्त प्रशिक्षण और क्वारंटाइन उपायों को अपनाते हुए राज्य में वापस आने की अनुमति दे | इस सन्दर्भ में दूसरे राज्यों के साथ योजना बनाने की आवश्यकता है ताकि अन्य राज्यों से हिमाचल में फसे मजदूरों की स्थिति पर भी चर्चा हो सके ● दूर-दराज के ऐसे क्षेत्र जैसे सराज, लाहौल-स्पिति और किन्नौर जहाँ पहुँचना मुश्किल हैं और जहाँ सर्दियों में इस महामारी के होने की सम्भावना बढ़ती है, ऐसे क्षेत्रों को ख़ास ध्यान में रखते हुए योजना तैयार करना | ● लॉकडाउन एक्ज़िट स्ट्रेटेजी टास्क फाॅर्स को जिला, ब्लाक, पंचायत और वार्ड स्तर पर एक दीर्घकालीन सोच के साथ मज़बूत संस्थागत तंत्र की योजना बनानी चाहिए| इसके माध्यम से क्वारंटाइन और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएँ, आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की स्थिति, कोरोनावायरस प्रशिक्षण का संचालन, प्रवासी मज़दूर, दिहाड़ी मज़दूर और अन्य वंचित समुदायों की स्थिति का लॉकडाउन एक्सटेंशन पीरियड के दौरान निगरानी रखने का काम किया जा सकता है| पुलिस और विजिलेंस डिपार्टमेंट इन चैनलों के साथ बराबर समन्वय बना कर काम कर सकते हैं | यह एक ऐसी घड़ी है जहाँ पहाड़ी समुदाय, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले, दूर-दराज के क्षेत्रों में बसे लोगों को एक दूसरे की सहायता और साथ देते हुए इस लॉकडाउन की घड़ी में इस महामारी का सामना करना चाहिए | इन सब में शांति और सदभावना का माहौल कायम रखने की ज़िम्मेदारी को सबसे ज्यादा अहमियत देनी चाहिए, खासकर मीडिया और सरकार को | इस बीमारी से बचने के लिए केरल द्वारा स्थापित किये गये उदाहरण से सीख लेकर हिमाचल को भी एक व्यवस्थित तैयारी करनी चाहिए | एक छोटा राज्य जिसमें जनसंख्या घनत्व भी कम है, होने का फायदा हमें इस घड़ी में उठाना चाहिए | हम सरकार से दृढ़तापूर्वक आग्रह करते हैं कि जैसे केरल ने पूरे देश के लिए एक उदाहरण कायम किया है वैसे ही हम भी जन स्वास्थ्य सेवाओं और राहत कार्यों को प्रभावी, शांतिपूर्ण तथा न्यायपूर्ण तरीके से लागू करने की मिसाल पूरे देश के सामने रखें |
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