“रियासत सुकेत का शासन तंत्र” - तुलसी राम गुप्ता
- GDP Singh
- 24 जन॰ 2020
- 4 मिनट पठन

भारत आपसी फूट के कारण ही परतन्त्र होता रहा है। मुगलों के बाद अंग्रेजों ने इसका भरपूर लाभ उठाया। अंग्रेज व्यापार करने आए और शासक बन गए। अंग्रेजों ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और पूरे भारत को अपने अधीन कर लिया। जिन राजाओं ने उनकी शर्तों पर अधीनता स्वीकार कर ली उन्हें अपनी रियासतों में स्वतंत्र रूप से राज्य करने का अधिकार मिल गया। रियासत सुकेत भी उन में से एक थी। राजा लछमण सेन इसके अन्तिम शासक हुए।
रियासत सुकेत का मुख्यालय सुंदरनगर चतरोखड़ी में था। इसकी सुंदरनगर, डैहर और करसोग तीन तहसीलें थी। राजा के प्राइवेट सैकरेटरी एवं राजस्व मुखिया श्री सिधूराम गुप्ता, खरीड़ी सुंदरनगर निवासी था। राजा प्रायः रियासत से बाहर रहता था इसलिए श्री सिधुराम शासन की पूरी जिम्मेदारी निभाता था। तहसिलों में तहसीलदार और उनके कारिंदों का ही हुक्म चलता था।
रियासत में कई प्रकार के लगान और टैक्स थे। जिनमे कुछ टैक्सों का विवरण दिया जा रहा हैः
बेगारः- राजा खानदान के क्षत्रिय, हल न चलाने वाले ब्राह्मण और महाजनों (गुप्ता) को छोड़कर प्रत्येक घर से एक व्यक्ति को वर्ष में एक बार एक मास की बेगार सुंदरनगर जाकर देनी पड़ती थी।
बेगार के बदले प्रतिदिन छः छटांक आटा और छःछटांक चावल (एक सेर का सोलहवां भाग यानी 5 तौला, वर्तमान पांच तौला का मतलब है 50 ग्राम, इस के अनुसार लगभग 3 किलो आटा और तीन किलो चावल दिया जाता था। सं.) तथा थोड़ा सा नमक ही मिलता था। किसी अधिकारी के दौरे पर जाने पर उसका सामान उठाने का काम, सड़क या अन्य कोई मरम्मत का काम बेगारियों से लिया जाता था। तहसील के सरकारी कारिंदे भी अपना काम बेगार में ही करवाते थे। किसी के न करने पर उससे चलाते हुए हल को छुड़ाकर भी बेगारी में भेजते थे।
अधिकारी का दौराः- किसी अधिकारी के दौरे पर आने पर उसके लिए खान-पान, दुध-दही, घी आदि मुफ्त में इकट्ठा किया जाता था। इसका अधिकांश भाग जेलदार, नम्बरदार और चौकीदार ही हड़प जाते थे।
जमीन का मालियाः मालिया काफी ज्यादा था। कई बार पैदावार कम होती थी और मालिया अधिक। मालिया न दे पाने की सूरत में जमीन भी नीलम कर दी जाती थी। जमीन के पैदा हुए सभी इमारती पेड़ पर सरकार का मालिकाना होता था।
टैक्स अहले हरफाः हर छोटे से छोटे से लेकर बड़े से बड़े व्यपारी को यह टैक्स देना पड़ता था। नाई, धोबी, घर-घर जाकर माल बेचने वाले (कछौड़) करने वाले किसी भी व्यापारी को इस टैक्स से छूट न थी।
यदि किसी का पशु मर जाता था तो उसका चमड़ा भी सरकार टैक्स के रूप में ले लेती थी।
दंड चोहारमः एक विवाहिता जब अपने पहले पति को छोड़ कर दूसरा पति चुन लेती थी तो दूसरे पति द्वारा पहले पति को रीत (पैसा) देना होता था। उस पैसे का चौथा भाग सरकार को देना पड़ता था।
टकांगणाः जब राजा साहिब का पहला लड़का होता था तो उसे टीका कहा जाता था। हर परिवार को टैक्स के रूप में एक रुपाया देना पड़ता था। एक रुपया 1 तोला चांदी का होता था।
गदांगणाः- जब टीका राजगदी पर बैठता था तो उस समय भी प्रत्येक परिवार को एक रूपया देना पड़ता था।
शोकः- जब राजा मर जाता था तो रियासत में दस दिन तक हाट, घराट आदि सारे कारोबार बंद हो जाते थे। छः मास तक जनता विवाह आदि समारोह भी नहीं कर सकते थे।
सुविधाएः-
शिक्षाः सुंदरनगर में एक मिडल स्कूल, डैहर पांगणा और करसोग में एक-एक प्राईमरी स्कूल था।
स्वास्थयः केवल सुंदरनगर में ही अस्पताल था।
यातायातः सुंदरनगर से डैहर, करसोग होते हुए फेरनू और तत्तापनी तक एक खच्चर की सड़क थी। प्रत्येक सड़क की साल में दो बार मुरम्मत होती थी।
टेलिफोनः- सुंदरनगर निहरी, पांगणा होते हुए करसोग तक एक टेलिफोन लाईन भी थी। मगर यह केवल सरकारी काम में ही प्रयुक्त की जाती थी।
तहसील का शासनः
यद्यपि रियासत में राजा का राज्य था मगर इसके अतिरिक्त तहसील में तहसीलदार का अपना ही कानून चलता था।
तहसील करसोग में महाबन निवासी चौधरी परसराम तहसीलदार था। वह हमेशा शराब में ही मस्त रहता था। उसने अपनी मर्जी से भी कुछ कानून बनाए थे।
उसके आदेशानुसार तहसील करसोग भवन के बाहर जो आम सड़क थी, उस पर कोई भी व्यक्ति घोड़े पर बैठक या नंगे सिर से नहीं जा सकता था। उल्लंघन करने पर उसे दंड देना पड़ता था।
एक बार एक कनावरा (नेगी) अपने काफिले के साथ घोड़े पर सवार हो कर तहसील के सामने से जा रहा था। उसने नेगी पर हुक्म अदूली का मुकदम्मा चलाया। नेगी काफी पढ़ा लिखा था। अंत में यह मुकदम्मा खारिज हो गया।
अपने चाचा श्री शुकरू पर भी हुक्म अदूली का मुकदम्मा चला कर चार आने जुर्माना कर दिया। लोगों ने उसकी नाजायज हरकतों से तंग आकर उसे सुंदरनगर बदली करवा दिया।
अन्तिम सुकेत सत्यग्रह में जब यहां की जनता का समूह सुंदरनगर पहुंचा तो उन्हें देख कर वह पागल बन गया।
राजा तथा उनके कर्मचारियों के जुल्म से तंग आकर जनता समय-समय पर विद्रोह करती रही। इन आंदोलनों के आगे झुक कर 26 फरवरी 1948 राजा ने सुकेत रियासत को भारत सरकार को सौंप दिया।
श्री दिलाराम महाजन, स्वतंत्रता सेनानी के सस्मरण के आधार पर
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