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बल्ह घाटी का नामोनिशान मिट जाएगा – परसराम

  • लेखक की तस्वीर: ahtv desk
    ahtv desk
  • 23 नव॰ 2019
  • 4 मिनट पठन


बल्ह घाटी में प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा परियोजना के अंतर्गत आने वाले कुम्मी, श्यांह, टांवा, कांसा, डाबन, डडौर, कनैड़, भौवर सहित 11 गांव की कुल जनसंख्या का लगभग 80 प्रतिशत दलित जनता है। इसके अलावा दो गांव मुस्लिम बहुल गांव हैं। दलितों को तो हो सकता है कहीं जमीनें मिल भी जाएं लेकिन मुस्लमानों को अन्य स्थानों पर जमीनें नहीं मिलेंगी। बीजेपी सरकार होने के चलते उनको ज्यादा डर सता रहा है। हमने अल्पसंख्यक आयोग व एससी-एसटी आयोग को पत्र लिखा है ताकि यह विस्थापन रुक जाए।

इलाके की जमीन बेहद उपजाऊ जमीन है। यहां का किसान एक बीघा से एक लाख का टामटर उगा लेता है और वह साल में तीन फसले लेता है। टमाटर के बाद धान और गोभी की फसलें ली जाती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हिमचाल में टमाटर उत्पादन में सोलन के बाद बल्ह इलाके का दूसरा स्थान है। इन गांव में ज्यादातर टमाटर का उत्पादन होता है।

अगर यह जमीन छीन ली जाएगी तो यहां पर बेरेजगारी बहुत अधिक बढ़ जाएगी। सरकारी नौकरियां पहले से ही कम हैं, दलित और मुस्लिम जनता में पढ़े-लिखे लोगों का प्रतिशत भी कम है। यहां जमीनों से पूरे परिवार को रोजगार मिला हुआ है। बहुत बड़ी संख्या में पढ़ा-लिखा तबका भी खेती को रोजगार के तौर पर अपना रहा है। किसान आधुनिक तरीके से खेती करते हैं। मुझे लगता है यहां जापान की तरह खेती हो रही है। बहुत कम जमीन से बहुत अधिक उपज यहां के किसानों को लेना आ गया है।


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जमीनों का जो मुआवजा सरकार दे रही है उस से यहां के नौजवानों को कुछ नहीं मिलेगा। हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है, जमीनों पर पुरुषों का अधिकार है, इस लिए बहनें शादी के बाद जमीनों का हिस्सा नहीं लेती, अगर मुआवजा मिला तो आधा मुआवजा तो बहनें या कहें रिश्तेदार ले जाएंगे। परिवारों में झगड़े बढ़ जाएंगे। किसानों को निवेश करना नहीं आता, ऊपर से आर्थिक संकट बढ़ा हुआ है, पैसे से पैसा बनाना किसानों को नहीं आता... कुछ सालों के बाद यह सारा पैसा खत्म हो जाएगा और लोग सड़कों पर आ जाएंगे।

यहां की जमीन के एक बिस्वा का रेट 5 से लेकर 10 लाख रुपए तक है, लेकिन मंडी कलेक्टर के अनुसार मुआवजा पटवार सर्कल के रेट से मिलेगा। वह 40 हजार से 80 हजार बिस्वा तक होगा। अगर इसको दो गुना भी दिया जाए तो किसानों को कोई फायदा नहीं होने वाला।

परियोजना से सीधे रूप से लगभग 10000 लोग विस्थापित होंगे। इसमें 3500 बीघा उपजाऊ जमीन जाएगी। सरकार के पास इन लोगों को बसाने की कोई वैक्लपिक योजना नहीं है। सरकार केवल पैसा देकर अपना पल्ला झाड़ लेगी। इसके अलावा भूमिहीन और प्रवासी मजदूरों जो प्रभावित होंगे उनके लिए किसी तरह का कोई प्रावधान नहीं है।

इस से पहले यहां पर बीएसएल प्रोजेक्ट लगना था। इसके लिए मंडी के पास डैम बनता और इस इलाके को एक झील में तब्दील कर दिया जाता, लेकिन जनता के भारी विरोध के चलते यह परियोजना स्थिगत करनी पड़ी थी। बाद में एक छोटी लेक सुंदरनगर में बनी थी तब बल्ह घाटी बची थी, अब लगता है बल्ह घाटी का नामोनिशान मिट जाएगा। यहां फोर लेन, नहर में पहले ही काफी जमीन गई है अब हवाई अड्डा और रेल लाईन की बात हो रही है। यहां बचेगा ही कुछ नहीं।

हवाई अड्डा बनने का समर्थन करने वाले, जिन्होंने यहां पर एक संगठन बनाया है उस में अधिकतर ठेकेदार व अन्य ऊपरी लोग हैं जिनके पास निर्माण मशिनरी है, यहां फोरलेन बन रहा है, उनकी मशिनरी उसमें लगी है, उनकी जमीनें इसमें जा नहीं रही है, इस लिए उन्होंने हवाई अड्डे का भी समर्थन किया है ताकि उनकी मशीनें उस में लग जाएं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनको लगता है कि हवाई अड्डा लगने से इलाका विकसित हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं होगा, इलाका बरबाद ही होगा, इतनी अच्छी उपजाऊ जमीन पूरे हिमाचल में कहीं नहीं मिलेगी।

यहां पर दलित मुस्लिम आबादी काफी संख्या में है। इनको जो जमीन मिली है वह किसानों द्वारा जमींदारों के खिलाफ किए गए संघर्ष का परिणाम हैं। 1966-67 में यहां किसान सभा ने आंदोलन किया था कम्युनिस्ट पार्टी उसका समर्थन कर रही थी। बात यह थी कि जब सुंदरनगर में बीएसएल का प्रोजेक्ट लग रहा था तो उसमें हजारों मजदूर कार्य करते थे। वहां कम्युनिस्ट पार्टी ने मजदूर यूनियन बनाई थी जिसने इलाके में किसान संगठन का निर्माण भी किया। उन्होंने जमीन की लड़ाई लड़ी और यहां लैंड टेननसी एक्ट के तहत मुजारों का जमीनें मिली थी। संक्षिप्त में इस कानून को 24,48 कहा जाता है। यह इस लिए कि जो सिंचित भूमि थी मुजारों को जमीन मालिक से लेने के लिए 48 रुपए प्रति बीघा और असिंचित भूमि के लिए 24 रुपए प्रति बीघा मुआवजा देना पड़ता था। इस लिए यह कानून 24,48 के नाम से मशहुर हो गया है। बहुत मेहनत और खून-पसीना एक कर यहां मुजारों ने यहां जमीनों को खेती लायक बनाय है। जब जमीन तीन-तीन फसले देना शुरु कर चुकी है और हजारों लोग इस पर कार्य कर रहे हैं सरकार ने उनको उजाड़ने के मनसूबे बांध लिए हैं।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इसको अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बना लिया है। उसका विधानसभा क्षेत्र सिराज यहां से ज्यादा दूर नहीं है। वह सिराज को पर्यटन उद्योग के तौर पर स्थापित करने के लिए बहुत सारे प्रोजेक्ट वहां लगा रहा है। अपने इलाके को विकसित करने के लिए यहां बल्ह में हवाई अड्डा स्थापित कर रहा है, यानी बल्ह को उजाड़ो और सिराज का विकास करो। यह नीति सही नहीं है। यहां के लोग भी हिमाचल के ही लोग है जिनको उजाड़ा जा रहा है। मुख्यमंत्री वित्त आयोग से मिलकर 2000 करोड़ रूपए की मांग करके आया है, दरअसल यहां पर कई छोटी-छोटी नदियां होने के चलते निर्माण की लागत ज्यादा आएगी। यह परियोजना बीओटी (बिल्ड आपरेट ट्रांसफर) के आधार पर बनेगी, इसलिए कंपनियों को अधिक फायदा देने के लिए सरकारी पूंजी का निवेश किया जा रहा है।

हिमाचल किसान सभा जिला उपाध्यक्ष परस राम से मुलाकात पर आधारित लेख

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