हिमाचल प्रदेश में भी उठी थी गदर की गूंज
- ahtv desk
- 18 जन॰ 2020
- 3 मिनट पठन
गदर की गूंज[1]
वारली धारा, पारली धारा गूंजो गदरा री आवाज,
विदेशी हुकूमत खत्म करीके ल्यावणा पंचायती राज

विभिन्न रियासतों में हो रहे यह आंदोलन भले ही ढंटे पड़ गए थे लेकिन पर्वतीय युवकों का लहू ठंडा नहीं हुआ था। 1909 की क्रांति (मंडी दूम्ह) के केवल पांच वर्ष उपरांत 1914 में एक बार फिर भारत में क्रांति का शोला भड़क उठा जिसकी आंच से हिमाचल का शांत युवक भी न बच सका और मंडी सुकेत जन क्रांति का शंक-नाद पर्वतों में गूंज उठा। 1857 में यहां के राजाओं ने अंग्रेज भक्ति का जो उदाहरण दिया था, वह स्वतंत्रता प्रेमियों के उदय में शूल-सा चुभ रहा था। वहां की मिट्टी में क्रांति का बीजारोपण हो रहा था तथा वातावरण में ‘गदर की कूंज’ व्यापत हो उठी थी।
गदर पार्टी के दो बड़े केंद्र शंघाई तथा मनीला थे। विदेश गए बहुत से भारतीय इस संस्था के सदस्य थे जिनमें मंडी नगर के युवक हरदेव भी थे। वह कांशीराम मल्होत्रा के दोस्त थे जो सानफ्रांसिसकों में पढ़ाई कर रहे थे। हरदेव को अमेरिका जाने से रोक दिया था वह बाद में शांघाई गए वहां उनकी मुलाकात गदर पार्टी के प्रमुख व्यक्ति मथुरा सिंह से हुआ और वह गदर पार्टी में शामिल हो गए।
गदर पार्टी ने जब क्रांति का आह्वान किया था 1914 में भारत में विद्रोह की योजना तैयार की गई लेकिन वह विफल हो गई थी।
लाहौर में एक गुप्त बैठक में 21 फरवरी 1915 गदर की तिथि रखी गई। इस बैठक में मंडी से निधान सिंह जुग्घा तथा भाई हिरदा राम ने भाग लिया था। सिपाहियों तथा सभी क्रांतिकारियों को यह सूचना भेज दी गई थी लेकिन एक गद्दार के कारण यह सारी योजना विफल हो गई। बाद में 21 की बजाए 19 फरवरी की सूचनाएं भेजी गई। भाई हिरादा राम को डा. मथुरा सिंह का गुप्त तार मिला जिसमें लिखा था – 19 का विवाह, अवश्य आओ।
लाहौर सेंट्रल जेल में क्रांतिकारियों के खिलाफ 16 अप्रैल 1915 को केस चला जिसको लाहौर कंसपिरेसी केस के नाम से जना जाता है। इस मे भाई हिरदा राम का नाम शामिल था। उनको मौत की सुजा सुनाई गई बाद में यह सजा काला पानी में बदल दी गई थी।
मंडी गदर पार्टी के कार्यकर्ता जो पहले खच्चरों पर माल ढोते थे और बाद में शंघाई जाकर गदर के सदस्य बने सुरजान सिंह ने ऊना में क्रांतिकारी युवकों की टोली का गठन किया था। इसके प्रमुख सहयोगी थे मिया जवाहर सिंह और सिधु खराड़ा जो कि गांव बछौत तथा बड़सू (मंडी) के निवासी थे।
दिसंबर 1914 में गदर पार्टी के क्रांतिकारियों ने बड़सू में पहली सभा का आयोजन कर जनता को जागरुक किया और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। सुरजन सिंह ने वहां उपस्थित लोगों को गदर पार्टी के नियमों और उद्देश्यों से अवगत कराया और बताया कि अमेरिका से कैसे गदर पार्टी के कार्यकर्ता अपना देश आजाद करवाने के लिए आए हैं। उनको हथियारों की सख्त जरूरत है। रियासतों में हथियार रखने पर पाबंदी नहीं है, आसानी से मिल सकते हैं और दूसरा सुकेत और मंडी मैदानी इलाके से दूर हैं यहां पर अपेक्षकृत रूप से छुपना आसान भी है। इस सभा में यह तय किया गया कि बम बनाकर मंडी के पुल को उड़ाया जाए तथा जगह-जगह नाकेबंदी की जाए। उसको बाद अंग्रेज रेजिडेंट को मौत के घाट उताकर रियासत के अस्त्रागार और खजाने पर कब्जा कर लिया जाए। गोला-बारूद प्राप्त कर पंजाब के क्रांतिकारियों तक सहायता पहुंचाई जाए। मंडी के क्रांतिकारियों ने धन, जन और गोला-बारुद देने का आश्वासन दिया।
मिया जवाहर सिंह को बम का खोल बनाने का दायित्व लिया तता सिद्धु ने दूम्ह आयोजन करने का जिम्मा सौंपा गया। पंजाब से बम का फार्मूला मंगवाने की बात तय हुआ।
सुरजन सिंह पंजाब गया वहां से बम बनाने में माहिर और लाहौर कंसपीरेंसी केस के फरार अभियुक्त निधान सिंह मंडी लेकर आआ, वअंग्रेजों के अनुसार वह करतार सिंह सराबा के बाद सबसे खतरनाक व्यक्ति था।
तब तक मिया जवाहर सिंह तथा सिद्धु खराड़ा ने मंडी तथा सुकेत में बमों के खोल बनाने के लिए मिस्त्रियों को नियुक्त कर लिया था।
सुकेत और बड़सू में फिर क्रांतिकारियों की सभाएं हुई जिसमें योजना को अमल लाने के लिए समय निर्धारित कियाए गए। इसमें पंजाब के क्रांतिकारियों की सहायता लाने की योजना बनी। जो व्यक्ति पंजाब सहायता लेने गए वह पकड़े गए और एक के बाद एक क्रांतिकारी पकड़े जाने लगे। योजना विफल हो गई।
पहला मंडी षड़यंत्र केस 1916 में आरंभ हुआ। इनमें से मियां जवाहर सिंह, बदरी, जवहार नरयाल, लंठू और सिद्धू थे। छठा अभियुक्त सिद्धू खराड़ा फरार होने में कामयाब रहा। सभी अभियुक्तों को 14 साल का कारवास सुनाया गया। 32 झूठे गवाह पेश किए गए। महारानी क्रांतिकारियों से मिली हुई थी इस लिए उसको मंडी रियासत से निकाला दे दिया गया। कहते हैं कि जब इनको लाहौर जेल ले जाया जा रहा था तो मंडी की अपार जनता ब्यासा पुल तक उमड़ती आ रही थी। इसमें सबसे आगे सीना ताने तमाम सजा प्राप्त क्रांतिकारी चल रहे थे।
[1] हिमाचल का क्रांतिकारिक इतिहास, चमन लाल मल्हौत्रा, गदर की गूंज लेक का संक्षिप्त रुप।
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