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गरीबी से लड़कर लुदर मणि ने प्राप्त किया इंजिनियरिंग में प्रथम स्थान व गोल्ड मैडल

  • लेखक की तस्वीर: GDP Singh
    GDP Singh
  • 21 जन॰ 2020
  • 4 मिनट पठन

आगे की पढ़ाई जारी रखना चहाते थे लेकिन मजबूरी वश करनी पड़ी नौकरी


हिमाचल इंजिनियंरिंग में प्रथम स्थान हासिल करने वाले लुदर मणि का घर, गांव शाकरा, पंचायत बाडो-रोहाड़ा, तहसिल निहरी जिला मंडी


पिछली लाईन, बीच में लुदर मणि, बाये चाचा जी, दाय माता खिमी देवी, कुर्सियों पर पिता केहर सिंह व दादा-दादी

नाथपा झाकरी हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट में जेई के पद पर कार्यरत लुदरमणि सुपुत्र केहर सिंह गांव शाकरा पंचायत बाडो-रोहाड़ा ने पूरे प्रदेश में पॉलिटेक्निक की इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग ट्रेड में पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान हासिल कर गोल्ड मेडल, प्रसस्ति पत्र और 11 हजार रुपये का इनाम प्राप्त किया है। यह गोल्ड मेडल उनको 2014-17 बैच के लिए मिला है। उन्होंने अपने गांव शाकारा का ही नहीं हमीरपुर गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कालेज का नाम भी पूरे प्रदेश भर में रोशन किया है। इतना ही नहीं उन्होंने एसजेवीएन में जेई पद पर नौकरी के लिए दी परिक्षा में पूरे उतर भारत में पांचवा स्थान हासिल किया था।

बहुत कठिन थी डगर पनघट की – बीपीएल का राशन कार्ड तक पंचायत ने नहीं बनाया

लुदरमणि शुरू से ही एक होनहार छात्र रहे। वह अपने गांव से 5 किलोमीटर पैदल चल कर स्कूल में पढ़ने जाते थे। सबसे बड़ी समस्या थी गरीबी। वह केहर सिंह - खिमी देवी दंपत्ति के घर चार लड़कियों के बाद लुदरमणि ने जन्म लिया। घर में घोर गरीबी थी। केहर सिंह अपनी लड़कियों को अधिक नहीं पढ़ा पाए लेकिन आखिरी संतान लुदरामणि को पढ़ाने में केहर सिंह व खिमी देवी ने जी जान लगा दी। पौने-दो बीघा जमीन में खेति कर अपने बच्चे के लिए वह सब सुविधाएं जुटाने की कोशिश की जितनी एक बच्चे के पढ़ने के लिए चाहिए होती हैं।

अभी भी दो कमरों के कच्चे पहाड़ी मकान में जिंदगी गुजार रहे केहर सिंह उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कहते घर में कभी-कभी खाने के भी लाले पड़ जाते थे। राशन डिपो से सस्ता अनाज नहीं मिल पाता था। पंचायत ने हमारा बीपीएल राशन कार्ड भी नहीं बनया न ही आईआरडीपी में हमारा नाम दर्ज किया। हमारे बच्चे को न कभी आरक्षण का फायदा हुआ न ही गरीबों के लिए सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं का।



पढ़ाई के दौरान जातिवाद का रहता है दबाव

अपनी योग्यता के दम पर पूरे हिमाचल में प्रथम रैंक हासिल करने वाले लुदर मणि को अन्य दलित बच्चों के तरह जातिय दंश को भी झेलना पड़ा। हिमाचल के बहुत सारे स्कूलों में आज भी दलित बच्चों को मिड डे मिल के दौरान, या कक्षा में अलग बिठाने के मामले प्रकाश में आ रहे हैं। जब लुदर मणि प्राथमिक शिक्षा हासिल कर रहे थे तो उनको भी इस तरह की परिस्थितियों का समना करना पड़ा। एक तरफ गरीबी मुंह चिड़ाती थी तो दूसरी तरफ जातिय भेदभाव का दंश। बहुत सारे मानिस दबाव के बीच उन्होंने अपनी योग्यता को बरकरार रखा और हर कक्षा में प्रथम स्थान हासिल करते गए।

पूरा श्रेय जाता है माता-पिता और अध्यापकों को

‌वर्तमान समय में वे 1500 मेगावाट की नाथपा झाकडी हाइड्रो पावर स्टेशन में एक जूनियर इंजीनियर (इलेक्ट्रिकल) है, वह AMIE (एसोसिएट मेंबर ऑफ इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर ) से पत्राचार के माध्यम से उच्च अध्ययन कर रहे हैं । उन्होंने इस उपलब्धि का पूरा श्रेय अपने माता-पिता और सभी शिक्षकों को देना चाहते हैं, क्योंकि उनके आशीर्वाद, शुभकामनाएं और कड़ी मेहनत के कारण वह आज अच्छा कर रहे हैं। वह कहते हैं, उनके पूरे जीवन में उन्हें अपने माता-पिता और शिक्षकों से हर परिस्थिति में प्रेरित रहने के लिए आशीर्वाद की आवश्यकता होती है और खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें जहां एक ओर बेहतर मां बाप का साया मिला है वहीं शिक्षकों की कड़ी मेहनत, कुशल मार्गदर्शन व आशीर्वाद से वे इस मुकाम तक पहुंच सके हैं।

सरकार को ग्रामीण इलाकों में बढ़ानी चाहिए सुविधाएं

लुदर मणि को इस बात का बहुत दुख है कि हमारे जैसे पिछड़े इलाके में मेधावी बच्चों को सही तरिके से मार्गदर्शन करने वाले नहीं मिल पाते। गांव में भी अधिकतर लोग पढ़े-लिखे नहीं थे। गांव के स्कूलों में टेलेंट की कमी नहीं है, बस उसको पहचानने में बहुत देरी हो जाती और पर्याप्त सुविधाँए नहीं है। बाड़ो-रोहाड़ा पंचायत के पूर्व प्रदान चेहत राम व स्थानीय युवक संत राम ने बताया कि हमें इस बात पर गर्व है कि हमारे लड़के ने जरनल केटेगिरी में प्रतियोगिता कर उतर भारत में पांचवा और हिमचाल में प्रथम स्थान हासिल किया है। गांव में इस तरह के बच्चों की कमी नहीं है लेकिन स्कूलों में उनको उचित मार्गदर्शन और बराबरी का व्यवहार नहीं मिल पाता जिस कारण मेधाविता और टेलेंट बचपन में ही मर जाता है। जिस प्रेसी स्कूल से लुदर मणि जैसे हीरे निकले हैं वहां आज तक साईंस की कक्षाएं नहीं है, सरकार को चाहिए जल्द से जल्द वह साईंस की कक्षाएं शुरू करे।

आगे पढ़ने में है रुचि

लुदर मणि ने उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए AMIE (एसोसिएट मेंबर ऑफ इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर) से पत्राचार के माध्यम से दाखिला हासिल किया है। उनकी इच्छा थी कि वह रैगुलर बैस पर यह कोर्स करते लेकिन सरकारी नौकरी के चलते यह संभव नहीं है। लुदरा मणि का कहना है कि घर की गरीबी के चलते मुझे पढ़ाई बीच में छोड़ कर एक साल प्राईवेट नौकरी करनी पड़ी इसके बात सरकारी नौकरी के लिये चयन हो गया है लेकिन मेरी इच्छा थी कि मैं रैगूलर बैस पर यह कोर्स करता और कुछ नई खोजे करता। लेकिन घर की गरीबी आड़े आ रही है। मैं अब यह पत्राचार के माध्यम से ही अपनी पढ़ाई जारी रखूंगा। वह बच्चों को संदेश देते हुए कहते हैं केवल अपनी मेहनत पर भरोसा रखा। किसी भी परिस्थिति में डगमगाओ मत।


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