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सुकेतियों ने राजा लक्षमण सेन को क्यों दिखाए थे काले झंडे - तुलसीराम गुप्ता

  • लेखक की तस्वीर: GDP Singh
    GDP Singh
  • 4 फ़र॰ 2020
  • 4 मिनट पठन

‘सुकेत सत्याग्रह का अगला चरण’

लेखक - तुलसीराम गुप्ता

‘प्रजामंडल की स्थापना’

तहसील करसोग में सर्वप्रथम अप्रैल 1945 में पांगना में सर्व श्री पं. नरसिंह दत्त, ला. जयलाल, हरिशरण, संतराम, तुलसीराम, ला. गोपीराम, लक्ष्मीदत्त आदि ने प्रजामंडल की स्थापना की।




उस समय प्रजामंडल की सदस्यता ग्रहण करना राजा से सीधा टक्कार लेने के समान माना जाता था। प्रजामंडल के प्रसार में इनके करसोग आने पर सर्व श्री दिलाराम महाजन, तेजराम, मंगतराम, रघवीर दास आदि काफी लोगों ने इसकी सदस्यता ग्रहण की।

श्री दिलाराम महाजन को इसका तहसील स्तर का सचिव नियुक्त किया गया।

ज्यों-ज्यों इसकी आवाज बढ़ती गई। हर गांव के लोग इसकी सदस्यता ग्रहण करते रहे और इसकी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेते रहे।



गांव में इसकी गूंज होने से राजा ने जनता पर दमन तेज कर दिया मगर आग और भड़कती गई। राजा ने प्रजामंडल को रजिस्टर्ड कर दिया और मिंया रत्न सिंह इसका प्रधान बना दिया गया। अब जलसे-जुलूस खुले रूप से होने लगे। लोगो में उमंग भरती गई और ज्वाला भड़कती गई।

राजा का करसोग दौराः-

प्रजामंडल योवन पर था। प्रजामंडल के बढ़ते प्रभाव के समाचार राजा को अपने भेदियों से मिलते रहते थे। बढ़ती गतिविधियों से चिन्तित राजा ने करसोग का दौरा करने का विचार किया।

राजा लछमण सेन 4-4-2003 वि.सं. ( 19 जुलाई 1946 )को पांगना पहुंचे। वहां लोगों ने उनको काले झंडों से स्वागत किया। राजा को अच्छा नहीं लगा।

राजा को अपने प्राइवेट सचिव श्री सिधुराम और श्री शिबू कायस्थ म्हरोठी निवासी को अपने दूत के रूप में श्री जयलाल के घर भेजा।

उन्होने श्री जयलाल से कहा कि आप लोगों ने राजा का काली झंडियों से स्वागत करके अच्छा नहीं किया। राजा जी तो पहाड़ के लोगों के दुःख तकलीफ दूर करने के लिए आप लोगों से विचार विमर्श करने आए हैं। हम राजा की तरफ से आपको निमंत्रण देने आए हैं कि आप लोग कल 10 बजे पांगना विश्राम गृह में बैठक में भाग लेकर विचार विमर्श कर लें। जिससे राजा और प्रजा के बीच पैदा हुई भ्रांतियां दूर हो सके।

5-4-2003 वि.सं. तदनुसार 20 जुलाई 1946 को पं. नरसिंह दत्त, ला. रामकृष्ण, ला. हरिशरण, ला, जयलाल और मिंया अमर सिंह का प्रतिनिधि मंडल राजा से पांगना विश्राम गृह में मिला। वहां 3 घंटे तक शांत वातावरण में बातचीत हुई। जनता के दुःख और कठिनाइयों से राजा को अवगत करवाया और इनको दूर करने के सुझाव भी दिए गए। राजा जनता की कठिनाईयों को सुनकर द्रवित हुआ यहां तक राजा और रानी की आंखों में आंसू भी आ गए।

राजा ने अगले दिन चिंडी में आम जनसभा रखने को कहा जिसमें अधिक से अधिक लोग इकट्ठे हो। इसी सभा में इस सम्बन्ध में घोषणा करने का निर्णय हुआ।

बैठक विसर्जित होने के बाद राजा का काफिला चिंडी को चल पड़ा। रास्ते में ठंडे पानी के स्थान पर चुराग के सर्व श्री संतराम, विन्हू, लछमण आदि का एक प्रतिनिधि मंडल मिला। उनकी रास्ते में तथा चिंडी में राजा की गुप्त वार्ता होती रही। उनकी बातों से राजा का शांत चित्त अस्थिर हो गया और सारी योजना ही बदल गई। सद्भाव बदले की भावना में बदल गया। अब पांगना के प्रतिनिधि-मंडल के पांचो सदस्यों को जान से मार देने व पांच-पांच हजार का इनाम घोषित कर दिया।

कार्यक्रमानुसार अगले दिन जब वे पांचो सदस्य अन्य साथियों के साथ चिंडी को चले तो उन्हें राजा द्वारा मारे जाने के षड़यंत्र का पता चल गया। वे सीधे न जाकर जंगल के रास्ते चिंडी पहुंचे। 2-3 घंटे में करसोग के हर इलाके यानी चवासी, रामगढ बगड़ा, विऊस, मांहू, शाओगी, बगशाड़, तत्तापानी आदि हर स्थान से हजारों लोग चिंडी में इकट्ठे हो गए और पांगना वाले वे पांचों भी इनमें मिल गए।

सभा आरंभ हुई तो राजा ने घोषणा की कि यह प्रजामंडल बगैरा केवल पांगना वालों की चाल है। आम प्रजा का इससे कोई वास्ता नहीं। यह लोग तो सरकार के खिलाफ हैं। पांगना को छोड़ कर, सुंदरनगर से यहां तक किसी ने भी कोई शिकायत नहीं की। मैं प्रजामंडल वालों को कुचल दूंगा। और पांगना होकर वापिस सुंदरनगर भी नहीं जाउंगा। इन्हें कुचल कर ही मुझे चैन आएगा।

राजा की यह घोषणा सुनकर जनता भड़क गई। प्रजा के अशान्त होने पर राजा कमरे की तरफ भाग गया। लोगों को अशांत होते देखकर पं.नरसिंह दत्त, जयलाल, रामकृष्ण, हरिशरण, अमरसिंह, केशवराम, सुरजू, सीतारम, कमला, नरोत्तम आदि सदस्यों ने जलसा करके बड़ी कठिनाई से शान्त किया। उन्होंने घोषणा की कि इस राजा से हमें कुछ भी मिलने वाला नहीं। अब तो यह बदले की भावना से दमन करेगा। इसका मुकाबला करने को हमें तैयार रहना है। आजादी मिलने तक हमें चैन से नहीं बैठना है। उन्होंने राजा को चेतावनी दे दी कि यह पांगना होकर नहीं जाना चाहता तो उड़कर चला जाए। हम भी नहीं चाहते कि इसके मनहूस कदम पांगना में पड़ें।

अगले दिन 7-4-2003 वि.सं. (22 जुलाई 1946) को राजा लछमण सेन चिंडी से करसोग होते हुए ममेल महाराजा शिव के दर्शन के लिए चल पड़े।

करसोग में जनता ने अपनी कठिनाईयों को राजा को बताने के लिए एक ज्ञापन तैयार किया और इस ज्ञापन को प्रस्तुत करने के लिए श्री दिलाराम महाजन को अधिकृत किया।

करसोग में राजा को यह ज्ञापन प्रस्तुत किया गया। जाते हुए राजा इसे अपने साथ ले गया मगर ममेल से वापसी पर दिलाराम महाजन को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

श्री वरन्तावर सिंह मजिस्ट्रेट ने 4-5-44 आईपीसी के अधीन मुकदम्मा दर्ज करके श्री दिलाराम को कैद कर लिया। अगले दिन 1000 रुपए की जमानत लेकर जमानत पर छोड़ दिया गया।

यह मुकदम्मा सुंदरनगर में 7 महिनों तक चला। महीने में दो पेशियां लगती थी। रास्ता पैदल था। 16-11-2003 वि. सं. (27 फरवरी 1947) को श्री प्रीतम सिंह जज ने उनको बाइज्जत बरी कर दिया।

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