पारंपरिक रूप से बच्चे गीत गा गा कर बाजर से मांग रहे हैं
- ahtv desk
- 12 जन॰ 2020
- 2 मिनट पठन
पारंपरिक रूप से बच्चे गीत गा गा कर बाजर से मांग रहे हैं लोहड़ी
लुप्त होती लोहड़ी गायन की पंरपरा को बचाने की जरूरत है
प्राचीन सुकेत रियासत अधीन आने वाले करसोग, पांगणा, निहरी, गढ़ चवासी और ततापानी आदि इलाकों में सदियों से लोहड़ी मनाने की पंरपरा चलती आ रही है। सर्दियों की समाप्ति को ओर इशारा करती लोहड़ी परंपरा न केवल किसानों व अन्य नागरिकों के लिए खुशियों भरा त्योहार रही है बल्कि बच्चों से भी यह त्यौहार बहुत नजदिकी से जुड़ा हुआ है।
करसोग, पांगणा के बाजार में घूम-घूम कर लोहड़ी गायन कर रहे बच्चे अपने पारंपरिक रिती-रिवाजों को न केवल याद दिला रहे हैं बल्कि अपने इतिहास को भी सहेज कर रख रहे हैं और आगे बढ़ा रहे हैं।
सुकेत में लोकगीतों और लोक गाथाओं की गौरवशाली परंपरा रही है। अलग-अलग मांगलिक अवसरों पर अलग-अलग गीत गाए जाते हैं। लोक गीत महज मनोरंजन का साधन नहीं होते इन लोक गीतों में स्थानीय जनता के सुख-दुख, पर्यावरण, इतिहास, परंपरा, रिती-रिवाज, अनुशासन आदि भरपुर विषय लिए होते हैं। इसी कड़ी में लोहड़ी से आठ दिन पूर्व से बच्चों द्वारा घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाए जाते हैं और लोहड़ी के दिन विशेष रूप से बच्चों को खिचड़ी प्रदान की जाती है। लोहडी़ के गीत आज भी समाज के हर वर्ग को आकर्षित करते हैं। हालांकि लड़कों और लड़कियों की अलग-अलग टोलियों द्वारा गायी जाने वाली लोहड़ी गायन की यह धारा अब संकुचित होती जा रही है।
वर्तमान में बच्चे लोहड़ी वाले दिन बच्चे खीचड़ी मांगने तो आते हैं लेकिन लोहड़ी से पूर्व आठ दिनों तक घर-घर जाकर लोहड़ी गाने बहुत कम आते हैं। बदलते वातावरण में यह परंपराएं लुप्त होती जा रही है। मनोरंजन के आधुनिस संशाधनों खासकर टीवी, इंटरनेट की दुनिया ने लोकगीतों को समाप्त करने का काम किया है। बच्चों में घर-घर जाकर गाना गाना शर्म का विषय बनता जा रहा है।
सुकेत संस्कृति के जानकार डा. जगदिश शर्मा व अन्य प्रबुद्ध व्यक्तियों ने इस बात पर बहुत चिंता जताई है कि समाज अपने त्यौहरों और लोकगीतों को भूलता जा रहा है। उनका कहना है कि युगों से चली आ रही लोहड़ी गायन की इस परंपरा को जीवित रखने के लिए समाज के हर वर्ग को लोहड़ी गाने वाली बच्चों की टोलियों को हर रोज सामर्थ्य अनुसार प्रोत्साहन धन राशि, उपहार, खान-पान की वस्तुएं प्रदान कर प्रेरित करना चाहिए, न कि नाक सिकोड़कर यह कहकर नजरअंदाज न करें कि "लोहड़ी वाले दिन ही पैसे मिलेंगे। लोहड़ी गायकों की ये टोलियां पैसों. के लिए नहीं, अपितु समृद्ध सांस्कृतिक मूल्यों का संदेश देने आती हैं।
श्रोताओं को प्रभावित करने वाली लोहड़ी गायन की यह समृद्ध परंपरा युगों युगों तक जन जागरण का प्रतीक बनी रहे इसके लिए लोकगायन की परंपरा को जीवित रखने के लिए हम सभी को योगदान करना होगा।
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