पहचान खोता हुआ पांगना का ऐतिहासिक किला किसी भी सरकार ने नहीं ली इस ऐतिहासिक धरोहर की सूध
- GDP Singh
- 11 फ़र॰ 2020
- 5 मिनट पठन
महामाया मंदिर और पांगना किले को पूरातात्विक महत्व का स्थल घोषित किया जाए
गगनदीप सिंह
इतिहास, संस्कृति, पूरातात्विक महत्व की जगहों के सरंक्षण के सारे के सारे सरकारी दावे पांगना पहुंचने तक दम तोड़ देते हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि पांगना क्षेत्र मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र में आता है। सराज में चार ऐतिहासिक किले हैं जिनका हाल भी बुरा है। मंडी जिला, तहसिल करसोग में पड़ने वाले नगर पांगना का हिमाचल प्रदेश के इतिहास में अनुठा योगदान है। पांगना सुकेत रियासत की पहली राजधानी है। पांगना में करीबन 1300 साल पूराना ऐतिहासिक किला है। ऐतिहासिक किले में उतना ही पूराना महामाया मंदिर है। लेकिन यह सब अपनी पहचान खोने के कगार पर पहुंच गए हैं। न तो सरकार इस की ओर ध्यान दे रही है न ही राज परिवार इसकी सूध ले रहा है।

647 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु हुई और साम्राज्य का पतन हुआ तो उतर भारत में राज्यों और राजाओं की बाढ़ सी आ गई। हर कोई राजा बनना चाहता था और अपने राज्य कायम कर रहा था। मैदानी इलाकों के राजपुत शासकों में युद्ध हुए। इन युद्धों में जो भी राजा हार जाता था वह हिमाचल का रुख कर लेता था। इन हारे हुए राजाओं ने हिमाचल के छोटे-सामंती शासकों को हरा कर या उन से जमीनें खरीद कर अपने राज्यों की नींव रखी और पूरे हिमाचल में अपने राज्य कायम किए। इसी दौरान सुकेत पर बंगाल से भाग कर आए गौर वंश के सेन शासकों ने सुकेत इलाके के राणाओं व ठाकरुओं को हरा कर अपना शासन स्थापित किया।
वीर सेन ने छोटे शासकों पर हमला किया और सतलुज के आसपास के इलाके को जीत लिया। कंडीघाट के ठाकुर ने कोई विरोध नहीं किया। इसक बाद सरही के ठाकुरों ने भी हाथ खड़े कर दिया चांदमारी थाना, गौहर और पांगना इलाका इसके अंतर्गत आता था। ठाकुर ने राजा से अपील की वह हरियारा के ठाकुर पर भी हमला करे। यह सुन कर ठाकुर भाग गया और वहां पर राजा ने महल बनाया जिसको टिक्कर कहा जाता है। सरही इलाके में 5000 फुट ऊंची जगह देख कर बीर सेन पांगना को अपनी राजधानी बनाया।
सेन वंश के सुकेती राजाओं ने पांगना में ऐतिहासिक किले का निर्माण करवाया जिसके बीचों-बीच आज महामाया मंदिर है। हालांकि अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि यह किस सन में बना था लेकिन प्रतीत होता है कि किला का निर्माण राजधानी बनने के साथ ही शुरू हो गया था। सुकेत रियासत में इस तरह के 18 किले थे लेकिन वह सब खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं। सबसे प्रमुख किला पांगना में भी बस महामाया मंदिर ही देखने योग्य बचा है। बाकि किले की दीवारें, बुर्ज, बावड़ियां, राजा का महल सब जमीदोज हो चुके हैं।
सुकेत रियासत के इतिहास के विशेषज्ञ और पूरात्तत्व जागरुकता पुरुष्कार विजेता जगदीश शर्मा बताते हैं कि किले की परीधी 825 मीटर होती थी। बीच में महामाया मंदिर स्थापित है जो कि भवन-निर्माण कला का अद्भुत नमूना है। यह छह मंजिला भवन है जो केवल पत्थर और लकड़ी से ही बना है। इसमें सीमेंट या किसी तरह की गारा, मिट्टी का इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसकी उम्र लगभग 1300 वर्ष है। फिर भी आज तक कोई भुकंप या प्राकृतिक आपदा इसको नुक्सान नहीं पहुंचा सकी है। न केवल इसका धार्मिक महत्व है बल्कि इसका पूरातात्विक महत्व भी है। किले की दीवारों लगभग 60 मीटर ऊंची थी जिस पर चढ़ना नामुमकिन होता था।
रणनीतिक दृष्टिकोण से पांगना किला और उसके स्थान का चयन अद्भुत है। पूर्व की तरफ पांगणा खड्ड किले की सुरक्षा करती है वहीं पश्चिम में पहाड़ स्थित है। दक्षिण और उतर में मैदान है। किले की मजबूती का अंदाजा इस से लगाया जा सकता है कि किले की दिवारों की मोटाई एक से अढाई मीटर तक चौड़ी है। किले के चारों तरफ बुर्ज बने हुए थे जिस पर खड़े तीरंदाज, तोपची, बंदूकों वाले सुरक्षा करते थे। किले के अंदर जाने के लिए सात दरवाजों को पार करना पड़ता था। किले का पहला दरवाजा जहां से शुरू होता था वहां शिवजी का मंदिर है। मान्यता है कि यहां पर भीम और हिडिंबा की शादी हुई थी। किले के दरवाजे इतने बड़े थे कि जब वह खुलते थे तो उसकी आवाज कई किलोमीटर तक सुनाई देती थी। मान्यताओं के अनुसार जब दरवाजा खुलता था तो सामने की पहाड़ी से जरूर एक पत्थर गिरता था।
मंदिर में स्थित है एतिहासिक महुनाग का मंदिर और जेल

किले के मुख्य दरवाजे के पास बगिल एतिहासिक माहुनाग का मंदिर है और उस मंदिर के नीचे जेल है जिसमें कैदियों का रखा जाता था। जेल बिना दरवाजों की है। छत से ही कैदियों को जेल में धकेल दिया जाता था और केवल उतना ही स्थान खुला रहता था जिस से कि उनको भोजन दिया जा सके। माहुनाग मंदिर का इतिहास बताते हुए जगदीश शर्मा जी कहते हैं कि मुगल बादशाह ने जब सुकेत के राजा श्याम सेन को बंदी बना लिया था तो मधुमक्खी के रूप में माहूनाग देवता ने राजा को दर्शन दिए थे कि वह आजाद हो जाएगा। तब राजा ने आजाद होते ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
सुकेत सत्यग्रह के दौरान किले को गिरा दिया गया था
1948 में प्रजा मंडल आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने जब सुकेत रियासत की भूतपूर्व राजधानी पांगणा पर कब्जा किया तो राजा के जुल्मों से तंग आई जनता ने किले को बहुत नुक्सान पहुंचाया था। उस समय किले का बड़ा हिस्सा टूट गया था। सुकेत रियासत भारत में विलय करने वाली पहली रियासत बनी थी और इसका सारा श्रेय यहां की क्रांतिकारी जनता को जाता है। इस विद्रोह में करसोग, त्तापानी, पांगना, निहरी, चरखड़ी, चुराग, फिरनू, डैहर, नांज आदि तमाम इलाकों की जनता ने बढ़चढ़ कर भाग लिया था।

कभी भी गिर सकती हैं बची हुई दीवारें
किले की बुनियाद और बड़ी दिवारें अभी भी बची हुई हैं लेकिन उनकी हालात जर्जर हो चुकी है। सारी दिवारें केवल लकड़ी और पत्थरों से बनी हुई है। बरसात का पानी लगातार भरने से उनकी हालात खराब हो गई है। दिवारें फूल चुकी हैं। अगर सरकार इस पर ध्यान नहीं देगी तो सदियों पूराना इतिहास मिट्टी में मिल जाएगा। अभी भी वक्त है कि किले का नक्शा दौबारा बनाया जाए। उस स्थान को पूरातात्विक महत्व का स्थान घोषित करते हुए सरकार उसको अपने हाथ में ले और उसका पुनर्निर्माण करे। न केवल इतिहास के सरंक्षण में बल्कि पर्यटन के लिए भी इसका बहुत महत्व है।
किले में मौजूद महामाया मंदिर परांगण कला का अद्भुत नमूना

किले में मौजूद महामाया का मंदिर अपने आप में कला का अद्भुत नमूना है। इसके निर्माण में गारा या सिमेंट का कहीं प्रयोग नहीं हुआ है, इसके बावजूद सदियों से मंदूर उसी स्वरूप में मौजूद है। मंदिर छह मंजिल का है। हर झरोखे पर अलग चित्रकारी की गई है जो कि काष्ठकला का अद्भुत नमूना है। मंदिर में मौजूद बावड़ियों पर स्लेट पत्थर की अद्भूत और ऐतिहासिक मूर्तियां है। बावड़ियों से पूरे पांगना नगर को जल की आपूर्ति की जाती थी। जल की निकासी के लिए पत्थर की सिलाओं से नालियां बनाई गई थी। मंदिर और महल के लिए जल की आपूर्ति पांगणा खड्ड से होती थी इसके लिए लिए कुहल गोडण गांव के नजदिक से आती थी।
जिला परिषद सदस्य श्याम सिंह ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि पांगना को पर्यटन स्थल घोषित किया जाए। आसपास के तमाम बड़े स्थानों पर इसके लिए साईन-बोर्ड लगाए जाएं और इसके सरंक्षण के लिए उचित राशि सरकार या पर्यटन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी की जाए।
एसडीएम करसोग सुरेंदर ठाकुर ने पांगना किले की समस्याओं कहा कि – पूरातात्विक और एतिहासिक स्थलों घोषित करना या उसके लिए उचित राशी आदि मुहैया करवाना कला व सांस्कृतिक विभाग मंडी के अंतर्गत आता है एसडीएम कार्यलय करसोग की तरफ से इस बारे में विभाग को लिखा जाएगा ताकि इसका सरंक्षण व संवर्धन हो सके। ऐसी ऐतिहासिक इमारतों का रखरखाव बहुत जरूरी है।

पूरातात्विक और ऐतिहासिक स्थलों पर मनमर्जी से किए जा रहे निर्माण कार्यों के खिलाफ भी लोगों ने रोष जाहिर किया है। लोगों का कहना है कि एसी जगहों पर प्राचीन इमारतों को उनके मूल स्वरूप में रहने देना चाहिए। अगर उसके आसपास कोई सराय, इमारत, पार्क आदि बनाया जाता है तो इस से उसकी सुंदरता नष्ट होती है बल्कि उसके नीचे प्राचीन अवशेष भी दब जाते हैं।
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