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प्रजा मंडल कार्यकर्ताओं पर किस तरह जुल्म किये राजा लक्षमण सेन ने - तुलसीराम गुप्ता

  • लेखक की तस्वीर: GDP Singh
    GDP Singh
  • 4 फ़र॰ 2020
  • 3 मिनट पठन

प्रजामंडल सदस्यों को दिशा निर्देशः-

राजा की वापसी के बाद प्रजामंडल के सदस्य और अधिक सक्रिय हो गए। पांगना में एक आवश्यक बैठक में सभी सदस्यों को दमन चक्र का सामना करने को तैयार रहने और जेल जाने के लिए तैयार रहने की शपथ दिलाई।

कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए सदस्यों को दो भागों में विभाजित किया गया। एक के जिम्मे प्रत्यक्ष रूप से कार्य करने को कहा गया तो दूसरे दल, जिसके मुख्य सदस्य श्री राधा कृष्ण, श्री संतराम श्री मुकुनंद लाल आदि थे, को भूमिगत हो कर काम का जिम्मा सौंपा गया। ताकि यह आंदोलन बीच में ही न रुक जाए।



भूमिगत दल का जिम्मा

जेल में गए साथियों से सम्पर्क रखना।

गांव में हर व्यक्ति को जागरुक रखना।

देहली स्टेट पीपल्स कान्फ्रैंस (दिल्ली स्टेट पीपुल्स कांन्फ्रेंस से सम्पर्क बनाए रखकर रियासत के प्रतिदिन के हालतों से अवगत रखना।

प्रजा में उभार

राजा के कर्मचारी जनता की आवाज को जितना भी कुचलने का प्रयास करते, उतनी ही गूंज और जोर से सुनाई देती।

रामगढ़ बगड़ा के कमलाराम, परमानंद, तथा मांहु के कार्यकर्ताओं ने सत्यग्रह आरंभ कर दिया। गरयाला के स्थान पर पुलिस ने उनपर लाठीचार्ज किया और सर्व श्री सूरजू, सीताराम, चरणू, परमानंद, जगरनाथ, भीखम, मिरजा (प्रथम) मिरजा(द्वितीय), लछमू, सरन, हिरा, धर्मानंद, और बालकराम, इन 13 कार्यकार्ताओं को कैद कर लिया।

इनको सुंदरनंगर ले जाकर 4-5 दिन बाद छोड़ दिया गया।

दमनचक्रः-

भारत स्वतंत्रता प्राप्ति की ओर अग्रसर हो रहा था तो राजा लक्ष्मण सेन का दमन चक्र चल रहा था।

सेफ्टी एक्ट 1947 की धारा 3 के अधीन चुन-चुन कर प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं को कैद किया जाने लगा। करसोग से दिलाराम महाजन, मंगतराम महाजन, देहरी से लछमीनंद शर्मा, पांगना से जीवणू, अमरू राजपुत, पं. नरसिंह दत्त, तुलसीराम, रामकृष्ण, हरिशरण, जयलाल महाजन, सुंदरनगर से मिंया रत्न सिंह, लटूरसिंह, वामदेव चार्ज आदिन प्रमुख थे।

राजा की जेल दो श्रेणियों में विभक्त थी। ए और बी उपरोक्त व्यक्ति ए श्रेणी में रखे गए।

ए श्रेणी के कैदी को प्रतिदिन नियमित राशन में चाय, चीनी, 400 ग्राम दूध, 800 ग्राम आटा, 800 ग्राम चावल, 50 ग्राम दाल, 50 ग्राम शुद्ध घी, सब्जी और उसी के अनुसार नमक मसाला तथा 3 सिगरेट प्रति कैदी को मिलते थे। खाना पकाने के लिए एक वोटी और एक सहायक मिला था।

पूरा दिन में चाय पीने और खाने के सिवाए और कोई काम नहीं था। इनके खिलाफ कोई मुकदम्मा भी नहीं चलाया गया।

एक कमरे में दो-तीन कैदी होते थे। आरंभ में केवल चाय पीने, खाना खाने और शौच जाने के लिए कमरे से बाहर छोड़ा जाता था। बाद में सारा दिन कमरे से बाहर रहने की आज्ञा मिल गई।

सर्दियां आने पर पूरा विस्तर न मिलने के कारण भूखहड़ताल करनी पड़ी। भूखहड़ताल तुड़वाने के लिए कई हथकंडे अपनाए गए।

दो दिन बाद एक थानेदार तीन-चार सिपाहियों के साथ जेल में आकर रोब देकर खाना खाने को मजबूर करने लगा। उसके रोब को देखकर मिंया लटूर सिंह और वामदेव चार्ज रोने लग पड़े। उन्होंने खाना भी खा लिया और सरकार के भेदिये भी बन गए। बाकी सबने खाने से इन्कार कर दिया। दस दिन तक जब बाकी साथियों ने खाना न खाया तो जयसिंह थानेदार रंचूराम हैड कंस्टेबल को साथ लेकर शराब के नेशे में चूर होकर जेल के बाहर से बकते हुए कि हम तुम्हें टट्टी भी खिलाएंगे तो वह भा खानी पड़ेगी, जेल में आए। उनके रोब से भी जब कोई खाने को तैयार न हुआ तो सभी को कमरे में बंद करके पं.लछमीनंद को कमरे से बाहर ले जाकर, चारपाई पर रस्सी से बांधकर जूतों से मारना शुरू किया। तब भी वह नहीं माना तो उसे छोड़कर बारी-बाकी से दूसरे कैदियों को ले जाकर भी इसी प्रकार यातना देते रहे। अंत में मिंया रत्न सिंह को भी इसी प्रकार चारपाई से बांध कर पीटा गया। जब उसे छोड़ दिया गया तो थोड़ी देर बाद उसने खाना खाना मान लिया। तब बिस्तर भी ठीक मिल गए और सभी साथियों में खाना भी खा लिया।

सभी ने उसू दिन राजा को चेतावनी भी दे दी कि जेल से छूटने के एक दो महीने के बाद या तो हम तेरी रियासत छोड़ देंगे या तुझे रियासत से बाहर कर देंगे। उसके बाद एक रात जयलाल को पुलिस वाले तफ्तीशी कमरे में ले गए, राजा भी वहीं बैठा था। उसे चारपाई पर बांधकर तीन-चार घंटे तक जूतों से पीटते रहे और बाद में नलके के नीचे बिठाकर ठंडे पानी से स्नान करवाया।

उससे अगली रात को मिंया रत्न सिंह और पं. नरसिंह दत्त को भी इसी प्रकार यातनाए दी गई।

इस समय श्री सत्यदेव बुशहरी भी अपनी गिरफ्तारी देने आए। मगर पुलिस ने उनको पीपलू के पास ही पकड़कर रियासत सुकेत की हद से बाहर ले जाकर बिलासपुर की हद में छोड़ दिया।

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