सुकेत रियासत को 1947 में नहीं 1948 में मिली थी आजादी
- GDP Singh
- 25 जन॰ 2020
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26 फरवरी 1948 विद्रोहियों ने सुकेत रियासत पर कब्जा कर राजा को भारत में विलय के लिए किया था मजबूर

15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवास और 26 जनवरी को पूरा भारत गणतंत्र दिवस मनता है। 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश साम्राज्यवाद भारत में अपने सहयोगियों को सत्ता सौंप कर चला गया था। लेकिन देश की बहुत सारी देशी रियासतें भारत में स्थापित हुई कांग्रेस सरकार के अधिन अपनी रियासतों को भारत में नहीं मिलना चाहती थी। सुकेत रियासत का राजा लक्षमण सेन भी अपने आपनी रियासत का भारत में विलय नहीं चहाता था। करसोग, तत्तापानी, चुराग, फिरनू, डैहर, निहरी, पांगना, चरखड़ी आदि की आम जनता ने मिलकर राजा के खिलाफ विद्रोह किया जिसको सुकेत सत्यग्रह के नाम से जाना जाता है। इस विद्रोह के बाद 26 फरवरी 1948 को सुकेत रियासत की जनता सामंती राजाओं के शोषण से आजाद हुई थी।

15 अप्रैल 1948 में भारत में विलय से पहले सुकेत रियासत कांगड़ा हिल स्टेटस का भाग होती थी। सुकेत रियासत का कुल इलाका लगभग 420 वर्ग मील था। जो कि सतलुज के उतर में 31013 और 31035 उतर और 76049 और 77026 पूर्व में स्थित था। इसके उतर में मंडी रियासत और पूर्व में कुल्लु सब डिविजन की सिराज तहसील होती थी, इसको बेहना धारा अलग करती थी। दक्षिण में बिलासपुर व भज्जी रियासत से इसको सतलुज अलग करती थी। पश्चिम में बिलासपुर की सीमा लगती थी।
विद्रोहियों ने सबसे पहले तत्तापानी चौकी पर कब्जा कर राजा के सिपाहियों को कैद किया था। कैदियों को वेलू ढांक में भेज दिया गया और सत्याग्रही सुंदरनगर की ओर प्रस्थान कर गए। 25 फरवरी 1948 को सत्याग्रही सुंदरनगर पहुंच गए। लगभग 10,000 का जन समूह था वहां 26 फरवरी 1948 को श्री गणेश दत्त और धर्मशाला से श्री कन्हैयालाल भारतीय फौज लेकर पहुंच गए और उन्होंने राजा के मिलिट्री कैम्प पर कब्जा कर लिया। इसी के साथ सारी रियासत पर सत्याग्रहियों का कब्जा हो गया।
2 फरवरी 1948 को तत्तापानी में पं.नरसिंह दत्त, लाला जैलाल, संतराम, ठाकुर केशवराम, कपुरू, मिरजा, प.कांशीराम व सोमकृष्ण शास्त्री आदि सहित 60 कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। इस बैठक में डा. परमार भी सम्मिलित थे। इसमे 8 फरवरी 1948 को चुने हुए सदस्यों की बैठक सोनी (भज्जी) में रखने का निर्णय लिया।
डा. परमार, पं. पद्मदेव, शिवानंद, रमोल, दुर्गा सिंह राठौर, लीला दत्त वर्मा, भास्करानंद, सदाराम चंदेल, दौलत राम, सदाराम चंदेल, दौलत राम सांख्यान, ठाकुर दत्त शास्त्री के अतिरिक्त 250-300 कार्यकर्ता करसोग तहसील के थे।
राजा तथा उनके कर्मचारियों के जुल्म से तंग आकर जनता समय-समय पर विद्रोह करती रही। इन आंदोलनों के आगे झुक कर 26 फरवरी 1948 राजा ने सुकेत रियासत को भारत सरकार को सौंप दिया।
इस विद्रोह में सबसे अधिक योगदान गांव के आम ग्रामिणों ने दिया था जिसका जिक्र सरकारी दस्तावेजों में नहीं मिलता। चुराग के ठठेरों का इसमें अहम योगदान माना जाता है। वह राजा के लिए हथियार बनाते थे। राजा के खिलाफ विद्रोह हुआ तो उन्होंने विद्रोहियों का साथ दिया और तलावर लेकर आगे-आगे चले ते। पांगना और जय देवी में राजा की सेनाओं के आने की खबर लगी तो लड़ने वालों में वह सबसे आगे रहे।
करसोग चौकी पर कब्जा – बोधराज बने थे थानेदार
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करसोग चौकी को कब्जा करने की जिम्मेदेरी सर्व श्री दिलाराम महाजन, रघवीरदास, भगतराम, लछमीनंद को सौंपी गई। पांगना चौंकी को पं. नरसिहं दत्त, सर्व श्री जयलाल, रामकृष्ण, दत्तराम, मिंया अमर सिंह, देवीराम, जवाहर, धर्म, माधिया को कब्जा करना था। निहरी चौकी की कमान ला. बोधराज ने सम्भाली थी। तत्तापानी फिरनू, करसोग, पांगना, निहरी की चौकियों पर जब विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया तो करसोग के बहादुर स्वतंत्रता सेनानी बोधराज को थानेदार घोषिक किया गया और कानून व्यवस्था को अपने हाथ में लिया गया। उन्होंने करसोग चौकी, तहसिलदार कार्यलय पर कब्जा करने में अहम योगदान दिया।
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