किस कानून पर नियंत्रण से बन नहीं रही आपके गांव की सड़कें ? क्या कर सकते हैं आप
- 16 फ़र॰ 2020
- 4 मिनट पठन
वन अधिकार कानून 2006 धारा 3(2) पर पुनर्विचार करे सरकार
इस पर नियंत्रण से हिमाचल विकास के क्षेत्र में पिछड़ रहा है
शिमला

पर्यावरण समूह हिमाधरा ने सर्वोच्च न्यायलय द्वारा वन अधिकार अधिनियम की धारा 3(2) पर लगाए गए नियंत्रण के हिमाचल प्रदेश में वन अधिनियम कानून 2006 को लागू करने में आ रही समस्यओं पर एक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें लिखा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय को वन कानून की धारा 3(2) पर लगाए गये नियंत्रण पर पुनर्विचार करना चाहिए साथ ही वन भूमि के सीमांकन और पिलर लगाने की प्रक्रिया से पहले हिमाचल सरकार को चाहिए कि वह पहले राज्य में पूर्ण रूप से वन अधिकार कानून 2006 को लागू करे।
रिपोर्ट से पता चलता है कि वन अधिकार कानून 2006 जिसको संक्षिप्त में एफआरए कहा जाता है के तहत हिमाचल प्रदेश की स्थानीय जनता को वन भूमि पर कई तरह के अधिकार प्रदान किए गए हैं। 13 दिसंबर 2005 से पहले तीन पीढ़ियों से जंगल पर निर्भर कोई भी व्यक्ति, समुदाय अपने निजी या सामुदायिक उपयोग और प्रबंध के लिए वन भूमि पर दावा कर सकता है। यह अधिकार एफआरए की धारा 3(1) के तहत मान्य होंगे। इसके अलावा धारा 3(2) ग्राम सभा को यह अधिकार प्रदान करती थी कि वह गांव की मौलिक जरुरतों के लिए 13 तरह के विकास कार्यों के लिए प्रस्ताव पारित कर वन भूमि का हस्तांतरण कर सकती थी। इन 13 परियोजनाओं में आंगनवाड़ी, स्कूल, सामुदायिक भवन, स्वास्थ्य, सडक जैसी जरुरतें आती है।
क्या है कोर्ट का आदेश
पिछले वर्ष ही मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा और दीपक गुप्ता द्वारा गोदावार्मन केस के अंतर्गत हिमाचल के सन्दर्भ में दिया गया वन अधिकार कानून से जुड़ा एक और आदेश सुर्ख़ियों में नहीं आया । 2006 में भारतीय संसद द्वारा पारित वन अधिकार कानून (FRA)की धारा 3(2) के अंतर्गत 13 प्रकार की स्थानीय विकास परियोजनाओं, जैसे सड़क, स्कूल, आंगनवाडी आदि, के लिए 1 hectare तक ‘वन भूमि’ का हस्तांतरण ग्राम सभा के प्रस्ताव तथा वन विभाग के प्रभागीय वन अधिकार (डी.ऍफ़.ओ) की मंज़ूरी से संभव है। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल में पेड़ों की छंगाई के मामले में (केस संख्या IA 3840 ऑफ़ 2014 गोदावार्मन रिट याचिका 202 ऑफ़ 1995)सेवानिवृत वन संरक्षक वी.पी.मोहन की अध्यक्षता में एक कमिटी गठित की थी । इस कमिटी ने FRA के अंतर्गत होने वाले हस्तांतरण पर रोक लगाने का सुझाव कोर्ट को फरवरी 2019 में दिया क्योंकि कमिटी के अनुसार हिमाचल में इससे बड़े स्तर पर पेड़ कटान होने की वजह से पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा था। सर्वोच्च न्यायालय ने वी.पी.मोहन कमिटी के सुझाव को मानते हुए पहले डी.ऍफ़.ओ द्वारा वन हस्तांतरण तथा पेड़ कटान पर पूरी रोक लगाई थी परन्तु मई 2019 में यह आदेश दिया कि वन हस्तांतरण के प्रस्ताव पहले न्यायालय को प्रस्तुत किये जायेंगे।
यानी सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर वन अधिकारी वीपी मोहन और गोदावार्मन द्वारा इस कानून की खिलाफ दायर किये गये मुकद्दमे पर सुनवाई करते हुए यह कह दिया है कि ग्राम सभा भूमि का हस्तांतरण तो कर सकती है लेकिन पहले उस दावे को कोर्ट में पेश किया जाएगा। इस कारण से हिमाचल प्रदेश में इस कानून पर एक बार फिर खतरे की तलवार लटक गई है। इस के चलते विकास कार्यों को भूमि का हस्तांतरण करने की प्रक्रिया वन सरंक्षण अधिनियम 1980 से भी लंबी हो गई है। आम जनता वैसे ही कोर्ट कचेहरी के चक्करों से दूर रहना चहाती है। कानून पर नियंत्रण के कारण प्रदेश में खासकर सड़कों के लिए वन भूमि हस्तांतरण बहुत मुश्किल हो गया है।
किस जिले के कितने गांव सड़कों से वंचित हैं
बिलासपुर जिले के 962 में से 738, चंबा के 1113 में से 527, हमीरपुर के 1634 गांव में से 459, कांगड़ा जिले के 3614 में से 1193, किन्नौर के 233 में से 162, कुल्लू के 172 में से 22, लौहल स्पीती के 284 में से 156, मंडी के 2823 में से 1174, शिमला के 2515 में से 1397, सिरमौर के 966 में से 279, सोलन के 2378 में से 1231 और उना के 755 में से 259 गांव में आज तक सड़कें नहीं बन पाई हैं।
ज्ञात रहे कि हिमाचल प्रदेश के एक पहाड़ी इलाका है जहां के 41 प्रतिशत गांव में आज तक सड़क नहीं पहुंच पाई है। सरकार ने वन भूमि के नाम पर प्रदेश की 66 प्रतिशत जमीन अपने अधीन कर रखी है। हालांकि जिसे वन भूमि कहा जाता है उस पर वन ही हो यह जरूररी नहीं है। सरकार ने 1974 में ग्राम पंचायत के पास मौजूद जमीन को भी अपने अधीन कर लिया था। गांव के विकास कार्य के लिए पंचायत के पास जमीन ही नहीं बची है। वन अधिकार कानून ने जनता को यह अधिकार दिया था कि वह वन भूमि का हस्तांतरण कर उपयोग और प्रबंध करे लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने इसको मुश्किल बना दिया है।
आप क्या कर सकते हैं
हिमाचल प्रदेश के हर गांव में सरकार द्वारा वन अधिकार कानून के तहत वन अधिकार कमेटियां बनाई हुआ हैं। इनको संक्षिप्त में एफआरसी कहा जाता है। अगर आप पंचायत से जुड़े हुए व्यक्ति है तो अपको जरूर पता होगा कि इस तरह का फारमेलिटी पूरी की गई थी। आप अपने गांव में कानून के तहत दिए गए उपभोग और प्रबंध के व्यक्तिगत अधिकार, सामुदायिक अधिकार, विकास कार्यों के लिए भूमि का हस्तांतरण का प्रस्ताव ग्राम सभा में पारित कर एफआरसी को दे सकते है, वह उसको ब्लाक एफआरसी, फिर जिला एफआरसी तक पहुंचाएगी। इसके बाद कोर्ट में केस चला जाएगा। इसके अलावा आप सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर पुनर्विचार की मुहिम चला सकते हैं।


हिमाधरा की पूरी रिपोर्ट पढ़ें
Comments