करसोग के ममलेश्वर महादेव मंदिर में धूमधाम से मनाया गया बूढ़ी दीवाली का पर्व
- ahtv desk
- 26 नव॰ 2019
- 3 मिनट पठन
रातभर वाद्ययंत्रों की धुनों पर गूंजती रही ममेल की शिवनगरी।
आधी रात के बाद देखने को मिला अदभुत देव शक्ति का नजारा देवगुरों ने खेलते हुए अंगारों पर चलकर करसोग वासियों को दिया सुख समृद्धि का आशीर्वाद।
कड़ाके की ठंड होने के बाद भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहूंचे ममलेश्वर महादेव के मंदिर

उपमंडल करसोग में खुशहाली के लिए आज के आधुनिक दौर में भी पौराणिक परंपराओं का निर्वहन पूरी पूरी आस्था और विश्वास के साथ किया जा रहा है। सदियों से चली का रही ऐसी की प्रथा के तहत सोमवार की देर रात करसोग के ममेल में स्थित महादेव महादेव मंदिर में बूढ़ी दिवाली का पर्व श्रद्धापूर्वक और धूमधाम से मनाया गया। इसमें करसोग घाटी सहित अन्य क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं ने नतमस्तक होकर देवताओं से मंगलकामना का आशीर्वाद लिया।

देव अल्याड़ी के पहुंचते ही बूढ़ी दीवाली का आगाज:
देवो के देव ममलेश्वर महादेव मंदिर में देव अल्याड़ी के प्रवेश करते ही बूढ़ी दीवाली का पर्व शुरू हुए। देवता के कारदारों ने जैसे ही पारंपरिक वाध्य यंत्रों की देव धुनों के साथ जलती मशालों को हाथों में लेकर पवित्र ममेल नगरी के प्रांगण में प्रवेश किया। पूरी ममेल नगरी भक्ति रस में डूब गई। करसोग सहित दूर दूर से आए श्रद्धालुओं ने हाथ जोड़ कर देवता का ममेल नगरी में पधारने पर स्वागत किया। बूढ़ी दीवाली के इस महान और पवित्र पर्व पर कांनी मदलाह के लोग भी वाद्ययंत्रों की थाप पर नाचते और गाते हुए मशालों के साथ शिव मन्दिर पहुंचे।

धुने के चारों और देव रथों और लोगो ने किया नृत्य:
ममलेशवर महादेव मदिर के प्रांगण मे प्रज्वलित विशाल देव धुनें की परिक्रमा कर देव रथों और लोगों ने एक साथ नृत्य किया। ये मनमोहक नजारा सिर्फ बूढ़ी दिवाली के अवज़र पर साल में एक बार ही देखने को मिलता है। इसमे ममलेशवर व नाग कजौणी के देव रथों के देवलुओं ने नृत्य करवाया और एक दुसरे को ठुडरु मारकर मंनोरजन भी किया। देव नृत्य की इस पवित्र परिक्रमा में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए।
दहकते अंगारों पर चले देवगुरु:
ममेल की शिवनगरी में उस वक्त अदभुत नज़ारा देखने को मिला जब भौर फटते ही देवगुर खेलते हुए दहकते अंगारों के ऊपर चले। प्रचंड अग्नि के बाद निकले इन अंगारों पर चलते हुए देवगुरों ने लोगों को सुख एवम समृद्धि का आशीर्वाद दिया। इस तरह बूढ़ी दीवाली पर ममलेश्वर महादेव मंदिर पूरी रात देवदुनों की वाद्ययंत्रों की मधुर धुनों से गूंजता रहा और इस दौरान पूजा अर्चना का लंबा दौर चलता रहा। महादेव मंदिर को लाईटों की लड़ियों से सजाया गया था।
इसलिए मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली:
ममलेश्वर के कार दरों के अनुसार बूढ़ी दिवाली का आयोजन दिवाली के एक महा बाद होता है। दूरदराज का क्षेत्र होने के कारण लोगों को श्री राम के अयोध्या पहुंचने का पता नहीं चल पाया था। 14 साल का वनवास पूरा करने के बाद श्री राम के अयोध्या पहुंचने का समाचार यहां लोगों को एक माह बाद मिला था। इसलिए करसोग में हर साल दीवाली के एक महीने बाद करसोग के ममेल में स्थित महादेव मंदिर में बूढ़ी दीवाली का आयोजन किया जाता है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है।

धूमधाम से मनाई गई बूढ़ी दीवाली: हंसराज शर्मा
मंदिर कमेटी के प्रधान हंसराज शर्मा का कहना है कि ममलेश्वर महादेव मंदिर में बूढ़ी दीवाली धूमधाम से मनाई गई। उनका कहना है कि रात 7 बजे ममलेश्वर की आरती के बाद अनपूर्णा मंदिर से पहली लकड़ी आती है। इसके बाद देव अल्याड़ी के आगमन के साथ ही बूढ़ी दीवाली का पर्व शुरू हुआ। रात की बेल होती है। उनका कहना है कि साल में पहली बार इस पर्व पर नाग देवता शिव भगवान बिना मंदिर से बाहर निकलते हैं।
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