मरणा कबूल है – असां जमीन नहीं देणी, अगर मैं मर गई तो जिम्मेदार होगी सरकार – लीला
- ahtv desk
- 8 दिस॰ 2019
- 4 मिनट पठन
प्रस्तावित एयरपोर्ट के खिलाफ 11 दिसंबर को गरजेगी संघर्ष समीति संघर्ष समीति को मिलने के लिए सीएम ने नहीं दिया समय
“मरणा कबूल है – असां जमीन नहीं देणी, अगर मैं मर गई तो जिम्मेदार सरकार होगी। मैं जमीन नहीं दूंगी। जितना सरकार पैसा देगी खेती से हम उसे चार गुना कमा लेते हैं। हम तीन-तीन फसलें लेते हैं। अगर जानवरों से खेती उजड़ रही है तो सरकार व्यवस्था करे, टैक्स लगाए हम टैक्स भरने के लिए तैयार हैं। हमारे हाथ-पांव देखो हमने खेत तैयार करने में कितनी मेहनत की है। रात दिन हमने मेहनत की है।”

बुजुर्ग महिला लीला, ग्राम स्यांह, बल्ह
बल्ह घाटी में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट खटाई में पड़ता दिखाई दे रहा है। एक तरफ खबरें आ रही हैं कि सुंदरनगर की पहाड़ियां हवाई जहाजों की लैंडिंग में बड़ी बाधा बन गई हैं वहीं ग्रामीण एयरपोर्ट के लिए अपनी बहुमूल्य उपजाऊ जमीन देने से इंकार कर रहे है। मुख्य मंत्री जय रामठाकुर की केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी से हुई मुलाकात के बाद ग्रामीणों में रोष बढ़ता जा रहा है। गौरतलब है कि दिवाली के तौफे के रूप में मुख्य मंत्री जय रामठाकुर ने मंडी में अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट स्थापित करने की घोषणा की थी और केंद्र सरकार ने इसको सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी। इसका कई चरणों में सर्वे भी हो चुका है। पहले यह परियोजना पहाड़ी, बंजर जमीन पर प्रस्तावित थी लेकिन ओएलएस सर्वे करने आए अधिकारियों ने जब पहाड़ से नजर मारी तो उनकी नजर बल्ह घाटी पर टिक गई, समतल जमीन देखते हुए उन्होंने नई साईट – डोयढा जंगल से कनेड़ तक की पांच किलोमीटर उपजाऊ जमीन को चुन लिया। प्रस्तावित परियोजना से 10 हजार लोग विस्थापित होने की संभावना है जिसमें 80 प्रतिशत जनता दलित, अल्पसंख्यक और अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित है। 3040 बीघा निजी भूमि और 460 बीघा सरकारी भूमि इस परियोजना की भेंट चढ़ेगी। ड्योढ़ा जंगल से लेकर 5 किलोमीटर तक लंबा और लगभग 3100 मीटर चौड़ा इलाका इसमें शामिल है।
बल्ह बचाओ संघर्ष समिति पीछले साल से इस परियोजना का विरोध कर रही है। पीछले सप्ताह भर से समिति परियोजना से विस्थापित होने की मार झेलने वाले 11 गांव में घर-घर जाकर लोगों से बातचीत व नुक्कड़ सभाएं आयोजित कर रही है। समिति अध्यक्ष जोगेंद्रवालिया और सचिव नंदलाल वर्मा ने बयान जारी कर सरकार से सवाल पूछे हैं कि 3500 बीघा से जो आबादी उजड़ेगी उसे कहां बसाया जाएगा? क्या विस्थापितों को मुआवजे के अलावा जमीन दी जाएगी? यहां पर जो कृषि-आधारित रोजगार कर रहे हैं, जिनके पास जमीनें नहीं है क्या सरकार उनके लिए रोजगार की व्यवस्था करेगी? दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों को उजाड़ने के लिए सरकार इतनी गंभीरता क्यों दिखा रही है? यहां पर पर्यावरण, पशु-पक्षियों, जंगल, नदी-नालों का जो नुकसान होगा उसकी भरपाई कैसे की जाएगी, जिन गांव को यहां से पानी जा रहा है उनकी सिंचाई व्यवस्था का क्या होगा? डूर टू डोर अभियान चला रहे बल्ह बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य पर्चा वितरित कर लोगों को 11 दिसंबर 2019 को 11 बजे कंसा मैदान में होने वाली सभा में आमंत्रित कर रहे हैं जिसमें आगे की रणनीति निर्धारित की जाएगी। नंद लाल वर्मा ने कहा कि उन्होंने सीएम महोदय से मिलने का समय मांगा था लेकिन अभी तक उन्होंने समय नहीं दिया है।

कनैड. ढाबण ढींक गांव में बसने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस परियोजना से बेहद नाराज हैं। नुक्कड़ मीटिंग में बोलते हुए ग्रामीण तालीब हुसैन अगर हम उजड़ गए तो दूसरी जगह बसना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है, दूसरों के साथ तालमेल नहीं बैठता, यहां हम सब इकट्ठे हैं, हमारी मस्जिदें हैं, जिसमें हमारे बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे हैं। अगर दूसरी जगह चले गए तो रिश्तेदारियों का ताना-बनाना टूट जाएगा। हम सब हिंदू-मुस्लिम यहां मिलजुल कर रह रहे हैं। हम चाहते हैं कि यह एयरपोर्ट कहीं ओर बन जाए। बहुत मेहनत के साथ हम खेती-बाड़ी कर अपने पांव पर खड़े हुए हैं।
डुंगरई पंचायत की प्रधान रीता देवी ने कहा कि मुआवजे के रेट पर कोई समझौता नहीं होगा, 25 लाख बिस्वा सरकार ने बताया था, मैं लोगों के साथ हूं, जो लोग कहेंगे वही होगा।
इसी गांव के सुंदरलाल ने कहा कि जिनको मुआवजा मिला कौल डैम वालों को वह सब उजड़ गए, बरबाद हो गए, बरबाद हम भी हो जाएंगे। लेकिन मेरा एयरपोर्ट से विरोध नहीं है, हमें मुआवजा 25 लाख रूपए बिस्वा के हिसाब से मिलना चाहिए। सरकार ने पहले इसका वादा भी किया था। इस से कम हम किसी कीमत पर हमारी जमीन नहीं देंगे।
एक तरफ जहां संघर्ष समीति के कार्यकर्ताओं का लोगों ने स्वागत किया तो वहीं कई लोगों ने उन पर सवाल भी दागे। ग्रामीणों का आरोप है कि संघर्ष समीति वाले तब कोई संघर्ष नहीं करते जब आवारा पशु हमारी फसलों को उजाड़ देते हैं, जब हमारे टमाटर, गोभी के रेट दो रुपये किलो मिलते हैं।
कनैड पंचायत के पूर्व प्रधान भुवनेश्वर लाल ने कड़ी आपत्ति दर्ज करवाते हुए गांव के लोगों को संबोंधित करते हुए कहा कि हमारे गांव में अब रेलवे की बुर्जियां भी लग गई हैं, पहले फोरलेन में भी हमारे गांव प्रभावित हुए। हम मर जाएंगे-मीट जाएंगे लेकिन जमीन नहीं देंगे। अगर सरकार 2013 भूमि अधिग्रहण कानून के तहत पुनर्वास करती है और बजार से चार गुणा मुआवजा देती है तो हम जमीन देने के लिए तैयार हैं।
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