विकास में क्यों पिछड़ा करसोग? जहाँ नाक वहाँ सोना नहीं,जहाँ सोना वहां नाक नहीं। डा. जगदीश शर्मा
- ahtv desk
- 17 नव॰ 2019
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यह है हिमाचल प्रदेश सरकार के उद्यान विभाग का 87 बीघा में फैला बागीचा। 87 बीघा 14 विश्वांसी में फैले इस रकबे में सेब और अनार के नाम मात्र पौधे हैं। कमाई इतनी कम कि इसकी आय से यहां कार्य कर रहे विभाग के चतुर्थ श्रेणी के एक कर्मचारी का वार्षिक वेतन भी नहीं निकल पाता। वर्षों से प्रदेश सरकार और राजनीतिज्ञों की अदूरदर्शिता की वजह से पांगणा स्थित उद्यान विभाग की यह जमीन बर्बाद हो रही है।पांगणा की इस जमीन पर पूर्व सरकार के कार्यकाल में मंडी जिला का दूसरा पोलीटेक्निक महाविद्यालय खुलने जा रहा था।सरकार और विभाग सहमत थे।जगह स्थानांतरित करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुंच गई थी।मेरे पास सरकार और विभिन्न विभागों के साथ इस विषय में हुए पत्र व्यवहार और पूर्व मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह जी की सहमति के पत्र प्रत्यक्ष प्रमाण के रुप में सुरक्षित है।पोलीटेक्निक के लिए राजस्व विभाग ने उद्यान निदेशालय की सहमति से 20 बीघा जमीन का रक्वा काट कर मुख्यमंत्री कार्यालय को भेज दिया था। इस महाविद्यालय पर यदि राजनीति न होती तो आज इस महाविद्यालय में पोलीटेक्निक के विभिन्न ट्रेड का तीसरा बैच बैठ जाता।इससे न केवल करसोग-मंडी अपितु पूरे प्रदेश और सीमावर्ती राज्यों के विद्यार्थियों को लाभ होता। करसोग ही नहीं प्रदेश भर में भूमि न होने के कारण कई शिक्षण और प्रशिक्षण संस्थान नहीं खुल पाते हैं।जबकि पांगणा में प्रचुर मात्रा में इतनी जमीन उपलब्ध है कि यहां पोलीटेक्निक के साथ इंजीनियरिंग महाविद्यालय और दूसरे संस्थान भी खुल सकते हैं।पांगणा के लोगों ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सहकारिता के बल पर पोलीटेक्निक के लिए सार्थक पहल और एक वर्ष तक सामुदायिक प्रयास किए थे।ऐसे में ऐतिहासिक गांव पांगणा ही पोलीटेक्निक का सही हकदार था भी और है भी।पांगणा से पोलीटेक्निक छीनने का किसी को भी हक नहीं।जिन्होंने इसे छीनने की कोशिश की है उन्होंने न केवल पांगणा करसोग के विकास को अवरुद्ध किया है अपितु मतदाताओं और युवा पीढ़ी से भी बहुत बड़ा विश्वासघात किया है। जिसे पांगणा वासी और भावी पीढ़ी कभी माफ नहीं करेगी।ऐसे में आज आवश्यकता है तो क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर राजनीतिक इच्छाशक्ति की।ताकि विकास एक ही जगह पर केंद्रीत न होकर बूथ स्तर तक विकास की किरण पहुंचे। जिससे करसोग-मंडी ही नहीं अपितु देश की.युवा पीढ़ी को एक रचनात्मक दिशा भी मिल सके।
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