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पढ़ खुद को - दुर्गेश नंदन

  • लेखक की तस्वीर: ahtv desk
    ahtv desk
  • 18 नव॰ 2019
  • 2 मिनट पठन



टन-टन, टन-टन बजती घंटी धप-धप,धप-धप बजता ढोल जय-जयकार का होता उद्घघोष उन्हें उन्मादी बनाता है और वे दुगुने जोश के साथ घसीटने -दौड़ाने लगते हैं एक बूढ़ी औरत को ।

मुंह काला है गले में जूतों की माला है भीड़ की बातों से पता चलता है उसे गांव से गया निकाला है बच्चे चीख रहें है घंटी बजा रहे हैं ढोल पीट रहे हैं महिलाएं मंगलगान गा रही हैं भीड़ हांफती बुढ़िया से कुछ जबरन उगलवा रही है कोई बुढ़िया को पानी पिलाने की बात करता है , तो कोई यह कहता रोकता, अकड़ता है अभी इसे और दौड़ाना है खूब हंफाना है मोबाईल पे फिल्म बनाता कोई कहता है यह सीन दुनिया को दिखाना है बुढ़िया को जान के लाले पड़े हैं पर फिर भी दौड़ रही है शायद डर है उसे रूकते ही उसके यह उन्मादी भीड़ उसे मार डालेगी ।

भीड़ रूकती है बुढ़िया बैठती है तभी किसी बाबे का जयकारा गूंजता है सच्चे दरबार का जयघोष होता है भीड़ का जोश बढ़ता है बुढ़िया को फिर दौड़ाया जाता है हंफाया जाता है जुर्म जबरन कबूलवाया जाता है पर बुढ़िया इत्ता भर कहकर चुप हो जाती है कि मैंने कुछ नहीं किया ।

वीडियो विचलित करता है मन में प्रश्न उभरता है यह कौन सा देवता है? या कौन सी माता है? भक्तों को जिसके किसी पे तरस नहीं आता है गूर जिसका ऐसा हुक्म सुनाता है सुनकर जिसको सारा गांव एक विधवा का मुहं काला करता है जूते की माला पहनाता है गांव में दौड़ाता है ।

बार-बार वीडियो देख मैं भीतर ही भीतर तड़फता हूं क्या करुं-कैसे करुं? प्रश्न खुद से करता हूं आस्था के नाम पर क्यों बढ़ रहा अत्याचार है क्या सच में यह आस्था है या आस्था के नाम पर व्यापार है ? तभी भगवान है !भगवान है ! कहता खुद का चेहरा सामने आता है , होता बुढ़िया से वर्ताब देख, सर शर्म से झुक जाता है , किसी का कहा याद आता है मंदिर मस्जिद में नहीं व्यवहार में ढूंढ उसको तू खुद भी तो इक किताब है पढ़ खुद को ।




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